लेखक की कलम से
पलाश …
मैं हर बार
महसूस कर लेती हूँ
तुम्हारी चटक रंगत के पीछे का
दारुन क्रंदन ….
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जंगल में होकर भी
तुम्हारे जीवन का
एकाकीपन ….
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उत्सव का शंखनाद
करते हुए भी
पलकों का
भीगापन ….
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मैं देख लेती हूँ
अक्सर
मुस्कान की ओट में छिपे
मोतियों को ….
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सुन लेती हूँ
समूह में नर्तन
करते हुए तुम्हारे
स्वरलहरियों की टूटन ….
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झांक लेती हूँ
जीवन में प्रीत का
आह्वान करते हुए भी
तुम्हारे
स्निग्ध हृदय का
रीतापन ……
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अधूरी ख़्वाहिशें
ज़ाया होते ख़्वाब
और
दहकती जिम्मेदारियां….
सच !
इन सबके बीच
बेहद ख़ूबसूरत हो
तुम !
©अनु चक्रवर्ती, बिलासपुर, छत्तीसगढ़