लेखक की कलम से
गुरू तत्व …
कहाँ नहीं है गुरु,
जो एक राह दिखाता हैं,
तम से प्रकाश का ,
मार्ग दिखाता हैं,
मानो तो हर जीव में है
गुरु का वास,
देता हर पल कुछ
अनोखे आभास,
यह तो वहाँ भी है,
जहाँ आलोचक हैं,
जो कंटको में मुस्काना,
सिखा देता हैं,
सहनशीलता को बढ़ा देता है,
एक बालक, एक पुष्प, नदिया, पर्वत
सभी तो कुछ सीखा देते हैं,
जीवन दर्शन कर देते हैं,
देखना भी हमें,
बनना भी हमें,
गढ़ना भी हमे,
तो क्यों न सीखे,
प्रकृति से,
हर कण से,
हर जीव से,
दर्शन करे गुरु तत्व का,
और हो जाये एक प्रकाश दीप,
जगमगाने को वसुंधरा,
जगमगाने को वसुंधरा।।
©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी