लेखक की कलम से
जन – जन सेवा मुक्ति पथ …
समीक्षार्थ दोहे
1.जन-जन सेवा मुक्ति पथ, चलते साधक सिद्ध ।
क्यों सेवा के नाम पर, उड़ते-फिरते गिद्ध ।।
2.कोई शोषण कर रहा, सेवा की ले आड़ ।
प्राणि मात्र को रौंदकर, करता आप जुगाड़ ।।
3.शोषित पीड़ित वर्ग है, अपने चारों ओर।
अवसर सच्चा जानकर उन्हें दिखायें भोर ।।
4.सर्व जीव कल्याण हित, मानव लोक बसाय ।
हिंसक आज स्वभाव है, इनसे कौन बचाय ।।
5.सेवा ही आधार है, दर्शन तारनहार ।
ईश अंश है देखते, वसुधा निज परिवार ।।
©श्रीमती रानी साहू, मड़ई (खम्हारिया)