लेखक की कलम से
नजरें …
नजरें नजरिया का अरदास है,
सोच तू भी तो एक खास है,
अच्छी भली हो नियत तेरी,
ये तो पाक साफ ईमान है।।
तू कुछ भी हो नियत न डिगा,
सूरत कैसी भी सीरत अच्छी बने,
ईमान ही इंसान की पहचान है,
नियत से नियति का निर्माण है।।
न जाने कितने डिगाते हैं नियत,
देखने की नजरिया पर टिका है,
हर बंदीसों पर तू खरा तो उतर,
तेरे हर पग का ये सीढ़ी बना है।
बेटी से बहन – माँ भी बना है,
न जाने सोच नियत का कैसे,
खोट न कर आबरू तो बचा,
इंसान से परवरदिगार बना है।।
©योगेश ध्रुव ‘भीम’, धमतरी