लेखक की कलम से

मेरी असहमति …

जैसा कि माना जााता है
जन्म के साथ ही मृत्यु का दिन निश्चित
वह कोई अजूबा नहीं था
उसके साथ भी यही था

जिस दिन वह सेना में भर्ती हुआ
उस दिन उसे अंतिम सम्मान मिलेगा
यह भी निश्चित था
उसको आज वह सम्मान मिला

पर इन दो निश्चित दिनों का गठजोड़
और घटना का यह पृष्ठ इतनी जल्दी समक्ष होगा
यह असहनीय है !
यह निंदनीय है !

अब तक सुनहरे पृष्ठों से बनी थी उसकी किताब
पर अंतिम पृष्ठ इतना स्याह होगा
यह काल की निर्दयता है !
यह विश्वास का क्षरण है !

इस घटनाचक्र से मेरी असहमति है

(हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन से मृत नेवी के जवानों की स्मृति में)

 

©विशाखा मुलमुले, पुणे, महाराष्ट्र                                                

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