लेखक की कलम से

दिल किताबों का मंजर…

दिल ये मेरा,
मरुस्थल की प्यास जैसे,
किताबों का मंजर है,
धड़कता और जीता है,
पढ़कर एहसासों को,
सहेजता है शब्दों की गहराइयों कों,
सराबोर होकर जीवंत करता,
दिल की अलमारियों से
गुजरता हुआ,
शब्दों के जंगल में
कभी उलझाता हुआ,
कभी मन को सुलझाता हुआ,
मार्मिक राहों पे दौड़ाता हुआ,
कभी अनगिनत सवाल करता हुआ,
कभी अनकही सी बातें बेहिसाब करता हुआ,
पन्नों में कहीं गायब होकर,
किसी किरदार में डूबकर,
उसे तलाशता है,
अतीत या वर्तमान या आस-पास,
बहुत ही लंम्बा सा सफर तय करता है,
कभी ममता की छांव से मिलवाता ,
कभी लोरियों की गोद में सुलाता हुए,
तो कभी सुकून की वादियों का विचरण कराता,
कभी स्नेह प्रेम को उजागर कराता,
भावनाओं को सागर करता हुआ,
आंखों में आंसुओं का द्वार बनाता,
कानों में फिर गूंजन करता,
दिल के इक कोने में घर करता,
पर कभी थकता नहीं,
हर पल लालायित ही रहता है,
तलाश करता है,
फिर कुछ नयी किताबें ।

©अंशिता दुबे, लंदन

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