अम्बर v/s धरा
“चावल से बिखरे तारों ने,
इस चादर ओढ़े बादल ने ,
ऐ बारिश………….
तूने हमको याद किया,
यूँ मेघा बरसे .. ……बरस गए,
ये नयन हमारे …….तरस गए,
तेरे गरजन जैसी बिजली ने…
इस धरती को पैग़ाम दिया,
नीले अम्बर के इस बगिया ने ,
बूढ़े होते समय की पहिया ने,
इस धरा धरती के बेला को सम्मोहन का पयाम दिया,
भड़क गयी ज्वाला जब विश्व धरा में,
तब जल का तूनें संचार किया,
कूँची-सींची गलियों ने……..
अभिनंदन सौ-सौ बार किया,
दलदल ने भी कमल खिला कर पूजन वंदन वार किया,
यूँ डूबी निशा ख़यालो में,
करवट लेती फिरती है,
हर रात ये बारिश की….
थोड़ी नोक झोंक भी दिखती है,
हर दिन की अंगड़ाई ने सूरज से शुरुआत किया,
ऐ धरा तू बन जा निशा,
आज बीती….
कल फिर भी तुझको याद किया,
छा जाती तारों की टोली,
चाँद का जब जब दीदार किया,
कौन बताए ऐ धरती तुझको,
बस तुमको ही मैं प्यार किया,
इश्क़ किया,
इनक़ार किया,
धूलों सा तुमको प्यार किया,
बच्चों सी हैं तेरी सूरत,
बस प्यार किया,
बस प्यार किया…”
©इंजी. गौरव शुक्ला, इलाहाबाद, यूपी