लेखक की कलम से

आखिर अब जंगल युग की जरूरत है …

वर्तमान समय काल की तरह मुंह फैलाए बैठा है। किसी को भी ये अपना शिकार बना रहा है। हर तरफ हाहाकार है। बस एक ही पुकार है… त्राहिमाम,,,त्राहिमाम,,,, हे प्रभु हमारी रक्षा करो!

पर अफसोस, कोई फायदा नहीं है। उस समय भी चीत्कार था- जब तुमने पेड़ पौधे, शेर, हाथी, गाय, बकरी, भैंस, मुर्गी, भ्रूण, मछली, सुअर न जाने कितने बेजुबान जीवों को मौत के घाट उतार दिया था। क्या उन्होंने प्रभु को याद नहीं किया होगा? क्या इन बेजुबान की भाषा उस ईश्वर ने नहीं सुनी होगी ? क्या इन निर्दोष जीवों के उस हाहाकार और उस निशब्द चीत्कार को भगवान ने नहीं सुना होगा?

अरे क्या सिर्फ हम मानव के ही भगवान हैं? इन बाकी जीवों को क्या मानव ने बनाया है?

आज ये सवाल आपकी अंतरात्मा को झकझोरेंगे, आपके मन को अशांत कर देंगे, पर सवाल बदलेंगे नहीं। और न ही बदलेगी वो हकीकत, जो मानव की करतूतों का परिणाम है, अब समय सम्हलने का नहीं, बदलने का है,

बदलिए अपने आप को और बदलिए अपने समाज को। मनुष्य द्वारा बनाई कृतिमता से बाहर आइए और इस खूबसूरत प्रकृति को वापस अपनाइए। पेड़- पौधे, नदी, पहाड़ जंगल, जीव, पक्षी, हर जगह इंसान ने अपनी करतूतों से हस्तक्षेप कर रखा है। धरती पर इंसान तो बहुत हैं पर इंसानियत विलुप्त होती नजर आ रही है, हमने प्राकृतिक संपदाओं का लगातार दोहन कर प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ कर रख दिया है। मानव की बढ़ती आकांक्षाओं ने कई जीवों की प्रजातियों को खत्म कर दिया है और कई जीवों की प्रजातियां संकटग्रस्त हैं,दूर दूर तक फैले जंगल आज मैदानी क्षेत्र का रूप ले चुके है,अगर अब भी हम नहीं सम्हले तो वो दिन दूर नहीं,जब मानव भी संकटग्रस्त और विलुप्त जीवों की श्रेणी में आ जाएगा।

तो आइए हम सब मिलकर एक नए वातावरण का निर्माण करें, प्रकृति में पाए जाने वाले सभी जीवो को, पेड़ पौधों को, नदियों को, पहाड़ों को,सबको प्राकृतिक तरीके से रहने दें।

©देवेन्द्र नारायण तिवारी, नेहरू कॉलेज पनवाड़ी, महोबा, यूपी 

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