लेखक की कलम से

बुढ़ापे की निशानी …

पथराई आँखें, उखड़ती साँसें ।

लड़खड़ाते चाल,पके हुए बाल।।

कहते हैं कुछ कहानी,

यही तो है ,बुढ़ापे की निशानी–

 

टूटे हुए दाँत, पुराना हुआ खाट।

खत्म सारे ठाठ, नदी को जाते बाट।।

कहते हैं कुछ कहानी,

यही तो है ,बुढ़ापे की निशानी—

 

मुँह में राम-राम ,हर पल विश्राम।

खत्म सारे काम,लगा पूर्ण विराम।।

कहते हैं कुछ कहानी,

यही तो है, बुढ़ापे की निशानी—

 

शरीर में झुर्रियां, अपनों से  दूरियाँ।

थरथराते काया,छूटते सब माया।।

कहते है कुछ कहानी,

यही तो है, बुढ़ापे की निशानी—-

 

सिमटते सब सपने,दूर होते अपने।

घिरती बीमारी, बढ़ती लाचारी।।

कहते हैं कुछ कहानी,

यही तो है बुढ़ापे की निशानी—-

 

अब सुनाना नहीं, सिर्फ सुनना है,

अपने किये कर्मों को,शांत हो गुनना है।।

कहते हैं कुछ कहानी,

यही तो है, बुढ़ापे की निशानी—

 

आज है तेरा, कल होगा मेरा।

इस पंछी का,कहीं और बसेरा।।

हर किसी का ,यही कहानी,

यही तो है, बुढ़ापे की निशानी

 

 

   ©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)    

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