लेखक की कलम से

गरीबी का क्रंदन …

 

 

 

कपड़ा आधे तन लपेटे

 

आधे मन लज्ज़ा समेटे

 

प्रश्न है ये कौन है

 

जिसने इक उंगली उठा

 

बेपर्दा तुम्हें ही कर दिया ।

 

दौलते ढेरों कमा कर

 

हवस खाने की बढ़ा कर

 

अट्टालिका में बैठ तुमने

 

रेशमी लिबास पहन

 

खुद को ही नंगा कर लिया ।

 

लैवेंडर में पसीना बदल

 

मुगालते में भूल कर

 

निवाला मुंह का छीन कर

 

गरीबों की हसरतें जला

 

शरारों से घर रोशन किया ।

 

टुकड़ों में जो जी मर रहे

 

भूख खा रहे दर्द पी रहे

 

अधनंगे आधे पेट सो

 

कमज़र्फ़ -ए-जहाँ के हौसलो

 

ने ज़िन्दा लहू दफन किया ।

 

©मधुश्री, मुंबई, महाराष्ट्र                                                

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