लेखक की कलम से
क्षितिज के उस पार…
कहता है यह मन बावरा
उड़ो पंछियों की भांति
खुले आकाश में
पेड़ों की छाया में
छुपन छुपाई खेलते हुए
हरित नव कोपल के झुंड में
चह चहाते हुए प्रसन्न चित्त
मेल हो नए साथियों से
उनके साथ उड़ान भर
पहुंच बीच नील गगन में
इंद्रधनुषी रंगों को बिखेर
क्षितिज के उस पार
जहां मिलन हो रहा
उस अंबर और धरती का
आनंद लूं उस मनोहर दृश्य का
जो कभी न देखा न सोचा
मानो आत्मा को प्राप्त हो रहा
उस परमात्मा का सानिध्य
ऐसा प्रतीत हो रहा
शनै शनै उस में होकर लीन
हो जाएगी आत्मा मुक्त
@डॉ. शालिनी द्विवेदी, हजरतगंज, लखनऊ
परिचय- विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं तथा एक पुस्तक प्रकाशित, लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेज में अध्यापनरत।