लेखक की कलम से

भिज्ञ हूं …

जैसे समस्त ब्रह्मांड ब्रह्म से

समुंदर लघु- वृहद लहरों से

कजरारे घन जलकणो से

लेखनी भावधाराओं से

स्वप्न चक्षुओं से

हृदय जिजीविषा से

विशालाकाय पर्वत श्रृंखलाएं

जल स्रोतों से

पक्षी नीड़ से

फूल सौरव से

अनवरत बढ़ते कदम मंजिल से

मनः पटल विचार श्रृंखलाओं से

प्रपात जल धाराओं से

बलखाती बेलें मस्ती से

नदियों का पानी समंदर से

वसुंधरा का कण-कण अज्ञात शक्ति से

ठीक उसी भांति

मैं उससे भिज्ञ हूं

 

©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता                            

Check Also
Close
Back to top button