माँ-बाबुल …
बीता हुआ बचपन, बहुत याद आता है,
जन्नत की गोद माँ का, वो याद आता है,
बाबुल का साया गगन सा, वो याद आता है,
कहां गया वो बचपन, कहां से ढूंढ के लाऊँ,
फिर वही सपनों की, मैं दुनिया बसाऊँ,
मीठी झिड़की बाबुल की, वो याद आती है,
फिर सुबक कर, माँ की गोद में
छुप जाना, वो याद आता है ,
कुछ देर में ही, पिता का पिघलकर
गले लगाना, वो याद आता है ,
फिर कंधों पर पिता के झूलना, वो याद आता है,
रूठ जाने पर, मां- बाबुल का मुझको मनाना,
मेरी हर फरमाइशें, वो पूरी करना,
हर पर्व पर हम भाई -बहनों के लिए
नए कपड़े ले आना,
फिर अपने लिए कुछ भी लेकर नहीं आना,
कहने पर बाद में ले लूंगा, बाबुल तेरा कहना,
कैसे- कैसे मैं भूल जाऊं, बाबुल तेरा मैं दुलार,
बीता हुआ बचपन, मुझे याद आता है,
मेरे लिए माँ तेरा, सपने संजोना,
मेरे हर जख्म पर, माँ तेरा मरहम लगाना,
हर बुराई से बच कर रहना है, माँ तेरा सीखाना,
कैसे- कैसे मैं भूल जाऊँ माँ मैं तेरी ममता,
वो प्यारा सा बालकनी कहाँ से ढूंढ के लाऊँ,
जहाँ माँ -पिताजी और हम सब बैठा करते थे,
वहाँ हम सभी के बारे में वो बातें करते थे,
होती थी मीठी नोंक- झोंक हम भाई बहनों की वहाँ,
कहां गया वो बचपन कहाँ से ढूंढ के लाऊँ,
कहाँ गए मेरे माता-पिता कहाँ से ढूंढ के लाऊँ,
क्या जन्नत से आप मुझको देख रहे हो माँ- बाबा,
क्या मेरी आपको भी याद आती है सदा…….।।
©पूनम सिंह, नोएडा, उत्तरप्रदेश