लेखक की कलम से

आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर भारत की तैयारी

कहा जाता है कि जिस देश की आंतरिक सुरक्षा जितनी मजबूत होगी, वह देश उतना ही दीर्घजीवी होगा। अन्यथा वह अपनी एकता, अखंडता और संप्रभुता को सुरक्षित नहीं रख पाएगा। दरअसल यह आंतरिक सुरक्षा का मुद्दा पुनः चर्चा के केंद्र में इसलिए आया कि हाल ही में जम्मू कश्मीर का एक डीएसपी देवेंद्र सिंह हिज्बुल मुजाहिदीन के दो आतंकियों को अपनी कार से श्रीनगर ले जा रहा था। आगे उनकी दिल्ली आने की भी योजना थी। मगर जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता से एक बड़ी अनहोनी होने से टल गई।

ध्यान देने योग्य है कि किसी सरकारी नुमाइंदे के आतंकियों या दुश्मन से मिले होने की यह कोई पहली घटना नहीं है। यदि पिछले महज तीन-चार वर्षों की ही बात करें तो वर्ष 2016 में पठानकोट एयरबेस हमले में सलविंदर सिंह नामक पुलिस अधिकारी की भूमिका संदिग्ध पाई गई थी। फिर वर्ष 2018 में डीआरडीओ के एक अभियंता निशांत अग्रवाल को ब्रह्मोस मिसाइल संबंधी सूचना पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) को लीक करने पर गिरफ्तार किया गया था। तो 2019 में राजस्थान से सुरक्षा बलों के 2 जवानों रवि वर्मा व विचित्र बेहेरा को गिरफ्तार किया गया। इनको हनीट्रैप का शिकार होकर खुफिया सूचना पाकिस्तान को देने के कारण गिरफ्तार किया गया।

मगर सवाल उठता है कि ऐसा क्या कारण है जो कुछ लोग इतनी आसानी से देश की सुरक्षा का सौदा करने को तैयार हो जाते हैं। वास्तव में कारण कई हैं, जो प्रत्येक घटना में अलग अलग-अलग तरीके से जिम्मेदार होते हैं। अगर देवेंद्र सिंह का ही उदाहरण देखें तो सामने आता है कि 12 लाख रुपए की राशि प्राप्त करने के बदले उसने यह सौदा किया। अर्थात् अधिकारियों का ‘नैतिक पतन’ एक विकट समस्या है। फिर सरकारी कर्मचारियों में तकनीकी जागरूकता की कमी भी समस्या पैदा करती है। दरअसल दुश्मन देश के लोग हनीट्रैप का जाल फेंकने के लिए अक्सर ‘वॉइस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल’ (वीओआईपी) तकनीक का सहारा लेते हैं। जिसके जरिए पाकिस्तान में बैठा एजेंट भी भारतीय कर्मचारी को भारतीय नंबर से कॉल कर सकता है। इसी भारतीय नंबर को देखकर अनेकों कर्मचारी धोखा खा जाते हैं। राजस्थान से पकड़े गए दो जवानों के मामले में यही हुआ।

इसके अतिरिक्त चुनौतियों में सुरक्षा एजेंसियों के मध्य तालमेल की कमी, आतंकी फंडिंग, धन शोधन, हवाला, साइबर हमले आदि वे कारक हैं जो समय-समय पर आंतरिक सुरक्षा की अग्नि परीक्षा लेते रहते हैं।

आंतरिक सुरक्षा में चूक के परिणाम बड़े गंभीर हो सकते हैं, जो देश की एकता व अखंडता के समक्ष खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। देश में किसी भी बड़ी हिंसक गतिविधि, आतंकी घटना, दंगे आदि को आकार दे सकते हैं। जो कई बार देश के मासूम नागरिकों को उनका जीवन त्यागने को विवश कर देते हैं।

फिर ऐसा नहीं है कि सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाए। वास्तव में देश के समक्ष उपस्थित आंतरिक सुरक्षा संबंधी चुनौतियों से निपटने हेतु अनेकों एजेंसियों का गठन किया गया, कानून पारित किए गए। 2008 के मुंबई हमले के बाद वर्ष 2009 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) का गठन किया गया। इसके अलावा आईबी, डीआरआई, सीईआरटी-इन आदि आंतरिक सुरक्षा के लिए समर्पित जांच एजेंसियों को स्थापित किया गया। आतंकवाद रोकने हेतु ही संसद से टाडा, पोटा जैसे कानून पारित किए गए। मगर वे राजनीतिक हितों की भेंट चढ़ गए और अंततः उन्हें समाप्त होना पड़ा। वर्तमान में अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रीवेंशन एक्ट 1967 (यूएपीए) इस दिशा में प्रभावी है, जिसमें हाल ही में 2019 में पाँचवां संशोधन किया गया। इसी के तहत भारत में पहली बार ऐसी कानूनी व्यवस्था की गई कि किसी ‘व्यक्ति’ के भी आतंकी गतिविधि में लिप्त पाए जाने पर उसे ‘आतंकवादी’ घोषित किया जा सकेगा। इससे पूर्व यह व्यवस्था सिर्फ ‘संगठन’ पर ही लागू थी।

बरहाल, समाधान के दृष्टिकोण से देखें तो सर्वप्रथम तो सुरक्षा एजेंसियों व राज्य की पुलिस, सभी साझेदारों के मध्य बेहतर तालमेल होना चाहिए। राजनीतिक हस्तक्षेप समाप्त होना चाहिए। संस्थाओं को तकनीकी रूप से अधिक सक्षम बनाया जाए। ‘रिसर्च एंड डेवलपमेंट’ पर अधिक फोकस हो तथा सिर्फ सरकारी कर्मचारियों की ही निगरानी हेतु एक पृथक सेल के गठन के विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए। सबसे बढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि यूएपीए के हालिया संशोधन को इस्तेमाल करने का सही वक्त आ चुका है। आतंकियों के साथ पाए गए सरकारी अफसर से ही उचित जांच-पड़ताल में दोषी पाए जाने पर प्रथम घोषणा की शुरुआत की जाए। जो भविष्य में ऐसा कदम उठाने वालों के मन में भय पैदा करेगी।

उपरोक्त सुझावों के आलोक में आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से प्रभावी रूप से निपटा जा सकता है। चूँकि आंतरिक सुरक्षा व बाह्य सुरक्षा दोनों एक-दूसरे की पूरक होती हैं। अतः देश की अखंडता-एकता को दीर्घजीवी बनाने हेतु आंतरिक सुरक्षा के मोर्चे पर और प्रभावी तरीके से बढ़ना होगा।

©द्विजेन्द्र कौशिक, इंजीनियर, दिल्ली

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