लेखक की कलम से

उसकी बाजी उसके मोहरे …

 

उसकी बाज़ी उसके मोहरे

हम कठपुतली उसके चेहरे

नाच नचाये वो अलबेले

जीवन का मैदान सजाए

हमे लुभाये हमे भरमाये

उसकी बाजी उसके मोहरे

 

उसकी बाजी उसके मोहरे

शह मात का खेल रचाये

चाल नई नई हमे खिलाये

बन चतुर वज़ीर रिझाये

जीवन की हर बिसात बिछाए

उसकी बाजी उसके मोहरे

 

उसकी बाजी उसके मोहरे

कब किसका खेल खत्म हो जाए

ये तो किसी को न पता चल पाए

ऊपर बैठा खेल हमसे ही कराए

हम क्या जाने कब अंत आ जाए

उसकी बाजी उसके मोहरे

 

उसकी बाजी उसके मोहरे

समय के घोड़े ढाई कदम  चलाए

समय के हाथों सब कुचला जाए

जिन्दगी एक शतरंज समझा जाए

पल पल यहाँ खेल बदलता जाए

उसकी बाजी उसके मोहरे

 

उसकी बाजी उसके मोहरे

ऊपर वाले तेरा खेल निराला

वहां न चले कोई हवाला

तू ही सबकुछ करने वाला

तू ही हम सबका रखवाला

उसकी बाजी उसके मोहरे

 

©डॉ मंजु सैनी, गाज़ियाबाद                                             

Back to top button