लेखक की कलम से
क्षणिकाएँ
1__ रोशनी को सर पर ढ़ोए थक्का मादा रवि
.शायद अपनी मंजिल भूला है
तभी अजगर सा दिन काटने को दौड़ा है
घड़ियों को सदियों में पलटने का
हुनुर खूब जानता रविराज !!
2__ मेरी डायरी के शब्द
आज्ञाकारी प्रहरी की तरह
करबद्ध कतार में खड़े हैं
कठिन डगर प्रेम की
पारकर प्रिय !
जाने यादों के कितने अंगार
आज भी दहक रहे मेरे आंगन
© मीरा हिंगोरानी, नई दिल्ली