लेखक की कलम से
प्यारा बंधन …
छुए क़दम यौवन की दहली,
ओढ़ चुनर मैं घर से निकली।
छोड़ के पीछे बचपन को,
साथ लिए मैं यौवन को।
एक नज़र में भाए पिया,
हृदय उनको सौंप दिया।
करके मैं सोलह श्रृंगार,
डाल मीत के गले में हार।
छोड़ के बाबुल का घर द्वार,
साजन संग करूँ नदिया पार।
मन भाए तेरा गीत पिया,
एक तू ही मेरा मीत पिया।
सरगम के सुर सात बजे,
नाम मेरा तेरे लवों पे सजे।
संगीत में सोभे राग-रागिनी,
सदा रहुं मैं तेरी संगिनी।
सातों वचन मैं मन से निभाऊ,
उम्मीद यही मैं तुझसे चाहुं।
बिश्वास पे टिकी ये चार दिवार,
मर्यादा की चौखट, करूं मैं पार।
तुझीं से सुबह तुझीं से शाम,
मैं तेरी सीता तुम मेरे राम।
दुल्हन बन तेरे द्वार मैं आई,
दुल्हन बन चाहूं विदाई।।
©रीमा सिंह, भोपाल