लेखक की कलम से

असमंजस …

 

असमंजस  को तुम दूर करो

यथार्थ हो कर चिन्तन करो

इधर-उधर की तुम बातें छोड़ो

प्रभु पर  तुम विश्वास किया करो,

 

असमंजस  जो तुम्हारे मन में

निंः शब्द होकर  तुम सोचा करों

मिलेंगे कितने यहां फ़रेबी

अफवाहों पर ध्यान दिया न करो।

 

©अर्पणा दुबे, अनूपपुर

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