जिदगी से मुलाक़ात …
एक दिन रास्ते में
मिल गई ज़िंदगी,
मैंने पूछा-
कैसी हो दीदी?
कभी तो मेरे घर भी आओ,
कम से कम चार दिन तो
मेरे साथ भी बिताओ!
ज़िंदगी बोली-
क्या करूँ बहन,
आना तो मैं भी हूँ चाहती
पर वो जो है न मौत
किसी का कहा नहीं मानती!
जहाँ भी मैं चार दिन हूँ ठहरती,
बस वहीं वो कमबख़्त
है आ धमकती!
पर देख तू न होना उदास,
हर मुश्किल का हल है
मोहब्बत के पास!
सोचा है अब मैं भी
प्रेम का द्वार खटखटाऊँगी,
अरे मौत तो बिन बुलाए आ जाती है,
मैं क्या बुलाने से भी न आऊँगी!!
©स्वीटी सिंघल, बैंगलोर, कर्नाटक
परिचय: जयपुर में जन्मीं स्वीटी सिंघल का स्थायी निवास गाजियाबाद उत्तरप्रदेश है। दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीकॉम पढ़ने के बाद सीएकी पढ़ाई पूरीं कर चुकीं हैं।कविता, गजल, मुक्तक, लघुकथा, कहानी आदि लिखने में इनकी रुचि है। हस्ताक्षर, रूह-ए-मोहब्बत और प्रेमांजलि तीन साझा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी है। राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में नियमित रचनाएं, लेख आदि का प्रकाशन.