प्रसूता…

एक स्त्री जिसने अभी

लिया है नया जन्म
दिया है जीवन
ईश्वर के प्रति कृतज्ञ
सुख की अनुभूति में
दुख को दूर छिटकाती हुई
दर्द का आनन्द लेती हुई
आत्मकथा में एक और
अध्याय लिखती, धीरे धीरे
उठकर चलने को तैयार होते
हुए नापती है दूरी
जीवन की मृत्यु से
अब तक जो हुआ
घटा बीता सबको व्यर्थ कर
एक किनारे लगा
अन्न जल, फल हंसते
हुए लेती है कि
नए दृष्टिकोण से देखना है जीवन
बहुत गहरे प्रेम में , लेकिन
कल्पनाओं से परे
खुली आँखों से
स्थिरमना हो
शिशु के स्पर्श सुख को
ही भीतर उतारना चाहती है
उस क्षण जीवन में
नहीं तलाशती कोई दोष
ना ही समझती बंधन
ओढ़ कर आंचल , शिराओं से
शिशु कंठ में उतारते हुए
दूध, करवाती हुई स्तनपान
विराट की अनुपम कृति
केवल और केवल
एक माँ लगती है
अतीत की थकान को भूली
भविष्य के डर से परे
जन्म प्रमाण पत्र पर
करती हुई हस्ताक्षर
पूर्णता में अपनी, धरती
आकाश लगती है
ममतामयी, ज्योतिर्मयी
वो स्त्री बहुत सुन्दर लगती है……
-सीमा गुप्ता