लेखक की कलम से
वो है जहां, हम नहीं पहुंचे वहां. . .
कोई खुशी न घर में, हर द्वार देखा।
भूखा समाज बस, और उधार देखा।।
वो है जहां, हम नहीं पहुंचे वहां, तो।
नीचे झुका सिर, उसे हर बार देखा।।
वो काश ये सितम, आज नहीं दिखाता।
देखी घृणा नजर में, तब प्यार देखा।।
आया मिला, पर नहीं, उसको खुशी थी।
खोया कहां पर, बुझा उपहार देखा।।
देखा नहीं लिपट, वो दिल से लगाना।
देखा गरीब बस, ना व्यवहार देखा।।