लेखक की कलम से

कच्ची कली…

जन्म लेने पर धरती की बोझ उसको माना गया,

खेलने कुदने की उम्र में चुल्हा चौंका सौंपा गया।

 

संस्कृति का ज्ञान मिला नहीं कुरिती उसको दिखाया गया,

ज़िन्दगी खुद से संवारना सिखा नहीं ख़ुदग़र्ज़ बताया गया।

 

खुद को परखना जाना नहीं किसी और को परखना सम्झया गया,

सम्भल कर चलना तो सिखा नहीं निसान बनाना सिखाया गया।

 

खुलकर जिना सिखा नहीं चार दिवारी में बंद किया गया,

कच्ची कली जाना नहीं मदारी का तमाशा दिखाया गया।

 

अस्मिता का कोई मोल नहीं उसको ही बेचा गया,

खुदरा उसको बेचिए नहीं अनमोल है बनाया गया।।

अस्मिता पटेल, बिरगंज, नेपाल

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