लेखक की कलम से

धरती के भगवान …

 

प्राण हथेली पर रखे, दिला रहे हैं त्राण।

कोटि कोटिशः नमन है, धरती के भगवान ।।

 

दूर स्वयं से कर लिए, सुत पत्नी घर द्वार ।

भूल गए विश्राम तुम, भूले नींद अहार ।।

 

एक कामना एक धुन, एक लगन इक आश ।

मानव पर आई विपत, यथा शीघ्र हो नाश ।।

©ओमप्रकाश भट्ट, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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