लेखक की कलम से

मैं माटी का पुतला …

मैं माटी का एक पुतला हूँ,

मैं क्या तेरे गुण गाऊँगा।

जिस राम ने मुझको बनाया है,

उस राम में ही मिल जाऊँगा।।

 

जब-जब जीवन में मेरे प्रभु,

अपनी हिम्मत से हारूँगा।

कालचक्र के घटनाक्रम को,

बन जयंत सा निहारूंगा।।

जब ना दिखे कोई द्वार मुझे,

न्याय का हो सरोकार मुझे।

तब हाथ जोड़कर मन ही मन,

हे राम ही राम पुकारूँगा….।।

मैं माटी का…

 

एक राम वन-वन में भटके,

एक राम सिया के चारों धाम।

एक राम ने रावण को मारा,

एक राम बसे जहाँ नंदीग्राम।।

अचरज भरे हैं काम तेरे,

जादु भरे हैं पांव तेरे।

मैं इन चरणों में लग कर ही,

भवसागर को तर जाऊँगा….।।

मैं माटी का…

 

©प्रेमिश शर्मा, कवर्धा, छत्तीसगढ़                                                                

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