लेखक की कलम से
जीत तभी जब झुकेंगे …
बिछड़े कब के अब मिल जाएं,
गीत प्रेम के फिर से गुनगुनाएं।
तुम कहां समझे ज़माने को यूं,
जो झुकते हैं वो ही जीत पाएं।
रिश्तों की भी मर्यादा होती है,
कुछ तो रस्में उल्फत निभाएं।
बड़े करते नहीं हमारा अहित,
बात इतनी सी गर समझ पाएं।
मान ही देना था उन्हें बस तुमको,
तुम कहते हो कि वो ही बुलाएं।
छोड़कर देखना झूठी ज़िद्द कहीं,
हर राह करेगी स्वागत जहां जाएं।
©कामनी गुप्ता, जम्मू