लेखक की कलम से

न छोड़ो यह डगर …

 

जिंदगी की हर समस्याओं को खुद सुलझाना पड़ेगा

अगर आ जाए तूफान तो उसके आगे से गुजरना पड़ेगा

गम चाहे जितने हो जीवन में

अपने आंसुओं को हमें छुपाना पड़ेगा

लाख कोशिश कर ले कोई तोड़ने की हमें

पर वह तो पत्थर से ही टकराएगा

आत्मविश्वास को मेरे न कोई हिला पाएगा

तकलीफ़ हो दिल में तो

कोई अपना ही जान पाएगा

कांटों की डगर में

बेझिझक मन हिलोरे मारेगा

किराए के इस शरीर को

न जाने कब खाली करना पड़े

रब की इबादत से मिले इस जीवन को

चमन में खिले फूल की तरह मुस्काते हुए

सभी को गले लगाना होगा

न किसी से बैर

न किसी से गिला

अपनी डगर पर हमें निरंतर बढ़ना होगा।।

 

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा                                  

Back to top button