लेखक की कलम से
हम सब की दिव्यजननी …
तुम आज शब्दिक सीमा की
बात ना करो
वो चहुंओर असीमित है
कोई बाँध कोई किनारा
ढूंढने का प्रयास ना करो
वो बर्फ सी भीतर भीतर बहती है
किसी ऋतु के कालचक्र में
उसका प्रेमस्राव बाध्य नहीं
वो ऋतुरानी महारानी है
जड़ से लेकर शाख फल पल्लव
उसके रक्तसंचित देहपोषित
वो अन्नपूर्णा जननी है
फूलों सी छुअन -चींटी सी लगन
युगों युगों से विश्व का आधार
वो रचयता जीवन भरनी है
हाँ वो हम सब की माँ
हमारा प्रारम्भ
हमारे विचार – हमारे संस्कार
हम सब की दिव्यजननी है ….?
©संजना तिवारी, दिल्ली