लेखक की कलम से
दो मुक्तक …
आज एक बार फिर से हुई आंखें नम है।
हम कैसे कहे क्या बताएं हमें क्या ग़म है।
यूं देख देश के शेरों को होते न्यौछावर।
करें हम जितना भी उनके लिए कम है।
कैदी-बंधक बनाकर मारने में क्या दम है।
अपना वीर सिपाही किसी से कहां कम है।
छिपा दुश्मन रूबरू हो युद्ध से कतराता।
छिप-छिप के करता हमले गिराता बम है।
©सुधा भारद्वाज, विकासनगर, उत्तराखंड