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कोरोना का सबक शहरों नहीं गांव में हो सब कुछ …

मुंबई {संदीप सोनवलकर} । कोरोना में देश ही नहीं दुनियाभर के बड़े शहर बुरी तरह घायल होकर कराह रहे हैं वहीं गांव और दूरदराज के इलाके काफी हद तक बचे हुये हैं जाहिर है कोरोना का सबसे बड़ा सबक यही हो सकता है कि शहरी और महानगरीय इलाकों के आसपास सब कुछ केन्द्रीत करने के बजाय यदि विकेन्द्रीकरण किया जाये तो शायद हम आने वाले महामारियों से बच सकते हैं।

मसलन मुंबई में देशभर में सबसे ज्यादा मामले आ रहे हैं क्योंकि ये शहर भारत का सबसे ज्यादा घनत्व वाला शहर है। मुंबई और उसके आसपास के महानगरीय क्षेत्र की आबादी ही करीब तीन करोड़ है जो देश के कई प्रदेशों के बराबर है. कोरोना की महामारी के चलते यहां सब कुछ बंद है लेकिन हालात नहीं सुधर रहे। देश का शेयर बाजार, कपड़ा बाजार, सोना बाजार यहां तक कि शिक्षा का बाजार भी यही सबसे बड़ा है। अब हुआ ये कि जैसे ही कोरोना फैला तो यहां बाजार बंद हो गये, लोकल ट्रेन बंद हो गयी और सारे स्कूल कालेज भी बंद हो गयी। यही हाल लगभग दिल्ली का है। दिल्ली में भी ज्यादातर फैक्ट्री और दफ्तर दिल्ली।

नोऐडा और गुडगांव के एनसीआर में ही फैले हैं यानी हमने सब कुछ शहरों में और उसके आसपास ही विकसित किया। यहीं मजदूर भी आ गये चाहे झोपडों में रहे या खुले मैदान में। अगर यही सब अलग अलग थोडी थोडी दूरी पर गांव में होता तो क्या ये सब बंद होता.. शायद नहीं..। मुंबई से महज दो सौ किलोमीटर दूर से शुरु कोकण पूरी तरह सुरक्षित है वहां कुछ भी नहीं।

दरअसल हमारे सारे नेता भी शहरों का ही विकास चाहते है क्योंकि कमाई भी यही है। अकेले मुंबई में समय मेट्रो सहित अन्य करीब तीन लाख करोड़ रुपये के काम चल रहे हैं जबकि इतने ही पैसों में तो देश भर में बेहतर रोड या रेल कनेक्टिविटी और विकास हो सकता था लेकिन सवाल तो प्राथमिकता है ये नहीं हो सकता कि हम केवल फैक्ट्री खोल दें और बाकी सब शहरो में रखे। हमें गांवों में काम के अवसर के साथ स्कूल, सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थय भी बनाना होगा तभी लोग वहां रुकेंगे।

कहा जा रहा है कि कोरोना के बाद अब फिर से विदेशी निवेश की लहर आने वाली है। दुनिया भर की कई कंपनियां भारत में आना चाहती है लेकिन जो खबर आ रहा ही उसके हिसाब से सरकार उनको भी बडे शहरों के आसपास ही एसईजेड में बसाना चाहती है। यानी मेक इन इंडिया भी शहरों में ही होगा गांव में नहीं जाहिर है जब भी फिर कोई भी आपदा आयेगी देश पीछे चला जायेगा। अभी भी देश के करीब 115 जिले कोरोना से पूरी तरह मुक्त है ये वो इलाके है जहां अब भी विकास नहीं हुआ है और जनसँख्या का दवाब कम है। देश के छोटे बडे शहरों में अब देश की करीब 46 फीसदी आबादी तक निर्भर है इसे वापस ले जाना होगा जहां भारत में अस्सी फीसदी आबादी गांव में होती थी। गांधी का ग्राम स्वराज ये रास्ता हो सकता है बस हम गांधी के चरखे से आगे जाकर मोबाईल और मशीन आटोमेशन तक जाना होगा।

अलग-अलग जिलों या गांवों का क्लस्टर डेवेलपमेंट एक बढिया रास्ता हो सकता है जहां एक इलाके को किसी एक वस्तु को बनाने का पूरा अधिकार दिया जाये और उसके हिसाब से ही सुविधायें दी जाये तो विकास हो सकता है। माडल कोई भी हो इतना तो साफ है कि शहरों की भीड. घटानी होगी क्योंकि धारावी जैसी बस्ती खुद नहीं बसी बल्कि मुंबई की जरुरतों ने उसे बसा दिया। इसे बदलना ही होगा।

आबादी के विकेन्द्रीकरण का फायदा पर्यावरण और स्वास्थ्य पर भी होगा। अभी देश के सबसे बेहतरीन अस्पताल मुंबई में ही है लेकिन आबादी के दवाब और अब लाकडाउन जैसे हालत के चलते ये तो यहाँ की आबादी की जरुरतों को भी पूरा नहीं कर पा रहे है अगर देश का हर जिला अस्पताल अपने आप में ही मेडिकल कालेज और कम से तीन सौ बेड का होता तो शायद कोरोना के नियंत्रण में भारी मदद मिलती। इसी तरह पर्यावरण पर भी दवाब तभी कम होगा जब शहर छोटे होंगे। अब भी वक्त है नीति आयोग या नीति निर्माता उनको सोचना होगा कि कोरोना के सबक सीख लें ताकि जब भी ऐसा कुछ हो पूरा देश बंद ना हो। भले कुछ इलाकों को बस ऐसा करना पड़े।

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