लेखक की कलम से
क्षमा हूं ….
आंखों में पलते सपनों की धार क्षमा हूं
रिश्तों में सिमटी खुश्बू का प्यार क्षमा हूं
अपना चैन गंवाकर भी मैं ख़ुश रहती हूं
दर्द हमेशा करती मैं स्वीकार क्षमा हूं
दुनिया के ताने-बाने देखा करतीं हूं
न्यायोचित समुचित सच्चा ब्यवहार क्षमा हूं
कर्तव्यों के पालन में सहभागी बनकर
सेवा श्रद्धा भक्ती की सहकार क्षमा हूं
आदर्शों की पंक्ति सजाकर निष्ठा व्रत में
जीवन का सीधा सादा आकार क्षमा हूं ….
©क्षमा द्विवेदी, प्रयागराज