लेखक की कलम से
अमृत सा तू और ज़हर सी मैं
कैसे कह दूँ दिल का हाल तुझसे कि
सतह सा तू और गहर सी मैं
कैसे खिलेंगे फूल प्यार के कि
गाँव सा तू और शहर सी मैं
कैसे अपनी धुन में मग्न रहूँ कि
कहानी सा तू और ख़बर सी मैं
कैसे इत्मिनान रखूँ अब तक कि
सहन सा तू और क़हर सी मैं
कैसे संभालू दिल के उफान को कि
समंदर सा तू और लहर सी मैं
कैसे होगा मिलन हमारा कि
साँझ सा तू और सहर सी मैं
कैसे निभाऊँ इश्क़ अब तुझसे कि
अमृत सा तू और ज़हर सी मैं
©अंशु पाल, नई दिल्ली