छत्तीसगढ़पेण्ड्रा-मरवाही

महामारी से नहीं भुखमरी से मर जाएंगे गरीब लोग …

हेमलता म्हस्के

कोरोना को मात देने के लिये पूरा देश एक बडी लड़ाई लड रहा है। और इस लड़ाई में सबसे ज्यादा परेशान मलिन बस्तियों में रहने वाले मजदूर और झुग्गियों में रहने वाले गरीब लोग हो रहे हैं। उनके पास जीने के बुनियादी साधन भी उपलब्ध नहीं हैं। लॉक डाउन के शुरुआती दौर में ऐसे लोगों की छिटपुट मदद की गई पर अब इनकी कोई पूछ नहीं हो रही है जबकि इनकी स्थिति अभी भी वैसी ही है जैसी लॉक डाउन की शुरुआत में थी।

आंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक भारत में कम से कम नब्बे फिसदी लोग गैर संगठित क्षेत्र में काम करते हैं।इन लोगों को बीमार होने पर ना छुट्टी मिलती है और ना ही पेड लिव , पेंशन या बीमा भी नहीं। कई ऐसे लोग हैं जिनके पास बैंक अकाउंट और राशन कार्ड भी नहीं है।ऐसे में उनकी जिंदगी उसी नकद आमदनी पर टिकी होती है जिससे ये पूरे दिन काम करने के बाद घर लेकर जाते हैं। परंतु लोक डाऊन की वजह से सबसे ज्यादा बुरा प्रभाव गरीब और मजदूर पर पडा है लेकिन लोकडाऊन में घर बैठे रहना कोई विकल्प नहीं है।

भारत में संगठित और असंगठित क्षेत्रो में कुल 12. 2 करोड लोगों की नौकरिया जाने के आंकड़े सामने आए हैं।इसमें दिहाडी मजदूर , रिहाडी लगाकर सामान बेचनेवाले , रिक्शा चलानेवाले , सिक्युरिटी ,सफाई करनेवाले लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।एक छोटी सी नौकरी और कुछ आर्थिक सुरक्षा के चलते , एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा से ऊपर आया था लेकिन कोरोना की चपेट में आने के कारण अब फिर से गरीबी रेखा के नीचे अा गई है। उनकी आजीविका पर संकट आने के चलते इनके हालत काफी बिगड़ गए हैं।

सरकार ने इस संकट की घडी से जरूरतमंदों को उबारने के लिये सस्ते लोन, मुफ्त राशन आदि की सुविधा तो दी है लेकिन इनका लाभ भी केवल उन लोगों को मिल रहा है जिनके पास लिए पर्याप्त दस्तावेज है। प्रदेश सरकार की ओर से गरीब लोगों को भुखमरी से बचाने के इंतजाम के बारे में कई दावे भी मीडिया पर किए जा रहे हैं। लेकिन गरीबों तक सरकारी मदद नहीं पहुच पा रही है। सरकारी राशन दुकानों लंबे समय तक अनाज आता नहीं है और आता है तो लोग टूट पड़ते हैं। लोगों की इतनी भीड़ बढ़ जाती है कि कोराना से बचाव के लिए एक दूसरे से दूरी बनाए रखने के लिए जो नसीहत दी जाती है उसकी तो पूरी तरह से धज्जियां उड़ जाती है।

लोगों की बुरी हालत को देखते हुए यह मानना पड़ रहा है कि जिल्हा प्रशासन लगातार राशन कार्ड और बगैर राशन कार्ड धारकों को नियमित आपूर्ति की बात कहता है परंतु वास्तव में ये बातें सिर्फ मीडिया तक ही सीमित रह गई हैं। लाक डाऊन की वजह से मजदूरों के काम छूट गए हैं। अब तक तो जैसे तैसे दिन निकाले परंतु अब राशन दुकानों पर भी अनाज नहीं मिलने से रोज कमाने वाले मजदूर भूख की मुसीबत का सामना कर रहे हैं।काम नहीं, पैसे नहीं। कहीं से भी कमाने का कोई जरिया नहीं। मजदूरों के हालात और बिगडते जा रहे हैं। महिला और बच्चे पके खाने या कच्चे अनाज बांटने वाले लोगों की राह तकते रहते हैं। कार्डधारक महिला बडी उम्मीद से रोजाना सरकारी राशन दुकानों पर चक्कर लगा रही हैं पर उनको हाथ निराशा ही लग रही है।

प्रशासन के अधिकारी ऐसे लोगों की जिंदगी में झांकने और उनकी कठिनाइयों को समझने की कोशिश नहीं करते। प्रशासन इसी तरह उदासीन रहा तो गरीब कोरोना से ना मरें पर भूख से जरूर मर जायेंगें। रिक्शा चलाने वाले लोगों का लोक डाऊन की वजह से काम ठप्प हो गया है। अब तो हालत इतनी खराब हो गई है कि इन्हें दो वक्त की रोटी भी बहुत मुश्किल से नसीब हो रही है। कोई सरकारी मदद न मिलने से उनके परिवार के लोग भी बेहद ही खराब हालात से गुजर रहे हैं।

मजदूरों की बस्तियों में महामारी के फैलने के भय को लेके लोग एक दूसरे से मिलते नहीं है। सभी अपनी अपनी समस्याओं को लेकर अकेले पड़ गए हैं। सामाजिक संघटना की आवाजाही बंद हो गई है। राशन तो दूर बच्चों को थोड़ा सा भी दूध नहीं मिल पा रहा है। लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं।ये गरीब और असहाय लोग जिस भुखमरी का सामना कर रहे हैं, उनके लिये तो यह कोरोना महामारी से भी ज्यादा जानलेवा है।

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