लेखक की कलम से

समानता …

अब बहुत हुई स्त्री पुरुष की लड़ाई, केवल सच्चाई को लड़ो, जो पुरुष को हक है वो स्त्री को भी हो।

फिर चाहे स्त्री स्त्री में भी मतभेद हो मगर सच के लिये लड़ो झूठ और गलत के लिये किसी का साथ मत दो।

यही जीत है।

बहुत सी लड़ाई स्त्री को लेकर होती रही है और हो रही है, तो सच के लिये हक के लिये सब बराबर।

अगर स्त्री गलत कर रही है तो, उसे भी अस्वीकार करो।

लेकिन पारंपरिक लडा़ईयों को छोड़ कर ?

क्योंकि अब तक स्त्री का हक वो नहीं था जो पुरुषों का था।

अब काफी हद तक हक मिला है मगर पूरा नहीं!

और अगर कानून ने दे दिया तो समाज नहीं स्वीकार करता मगर उसे भी बदलना होगा।

जरुरी है हक बराबर

झूठ की पर्दादारी खत्म।

मैने काफी हद तक स्त्री को स्त्री के विरुद्ध खड़े होते सुना और देखा है इस सोच की स्त्री अगर है तो विरोध करो।

अपने अस्तित्व को बचाव

जीवन और स्वाभिमान सभी स्त्रियों का बराबर है

इज़्ज़त और सम्मान न खो इस लिये बहुत सी पीडा़ओं से गुजराती रहती है।

शायद उनमें पुरुषों के साथ साथ स्त्रियाँ भी काफ़ी हद तक शामिल हो जाती है।

गलत को गलत कहो

चाहे स्त्री हो या पुरुष।

सम्मान और इज्जत से ज्यादा कोई चीज कीमती नहीं होती।

लेकिन झूठी शान के लिये सम्मान को और ईमान को न खोना !

स्त्री कोई कमज़ोर नहीं जो हर बात पर ये कहा जाता है कि कोई बात हुई तो स्त्री की इज्जत खतरे में आजायेगी

यह गलत है।

अगर आप अपने को सम्मान और न्याय नहीं दोगे तो

जीवन भर अधूरे घूट पीकर पीड़ित बने रहोगे

जिस पर केवल तरस किया जायेगा जो तुम्हें नहीं स्वीकारना चाहिए।

तुम्हारा हक बराबर है।

पुरुष बीज देता है तो स्त्री फल देती है

लड़ो सच के लिये अपने लिये तुम्हारा साथ तुम खुद ही दो कोई नहीं देगा …

 

©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी

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