लेखक की कलम से
हवा हमें तुमसे प्यार है …
कुछ घड़ी बैठ लम्बी सांसे भरकर कह दो
ओ हवा हमको तुमसे प्यार है बोलो ना कह दो
कानन में आनन को ढूंढ़ो जिसने उसे हराया
बीज बीज में सोया वृक्ष मिलने को मिट्टी से कह दो
हंसी ओढ़कर चलती हूं दिल घबराये ना इसलिए
खुद को छोड़कर चलती हूं आंखें डबडबाए ना इसलिए
दफ़न सीने में कर बैठी घूंट खून का कतरा कतरा
ख़तरा ख़तरा सुन डरती हूं कोई कतराए ना इसलिेए! …
©लता प्रासर, पटना, बिहार