लेखक की कलम से

प्रभु का इंतजार

बिना दोष, संताप सही,
संग संग भटकी जंगल मे,
राम प्रेम में भूली सब दुःख,
लांघ कर सीमा की देहरी,
डरी नही लंकापति से,
बस आस यही प्रभु आएंगे,
साथ हमें ले जाएंगे,
सिया अकेली नहीं कभी थी,
अश्रु सखी ने साथ निभाया।
बादल निहारती,केस को संवारती,
बूंदों को आलिंगन कर प्रेम जताती।
अशोक वाटिका में फूलों संग,
प्रभु की मधुर बातें बताती।
नैनो में जो प्यास मिलन की,
पूरी होगी हनुमत से,
इसी सोच बैठी वैदेही,
डरी नही त्रिजटा डर से।
रावण का आभार करती,
छुआ न जिसने कभी
दामन को,
शिव भक्त था वो ब्रह्मज्ञानी।
© अंशिता दुबे, लंदन

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