मुंगेली ऐसे ही नहीं बना दानवीरों की नगरी
@मनोज अग्रवाल, मुंगेली, छत्तीसगढ़
शास्त्रों की एक उक्ति है जिसमें कहा गया है कि दोनों हाथों से कमाओ और हजार हाथों से दान करो। इस उक्ति को मुंगेली नगर के हमारे पूर्वजों ने आत्मसात कर लिया था, उनके द्वारा किए गए सामाजिक उपादेयता के कार्य ही उनकी पुण्यस्मृति के रूप में आज हमें गौरव की अनुभूति से भर देते हैं। लोकहित का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जिस पर नगर के हमारे पूर्वजों की कीर्ति पताका न फहरा हो। आज भी विभिन्न अस्पताल- विद्यालय- महाविद्यालय- धर्मशालाएं हमारे इन पूर्वजों की दानशीलता की गौरव गाथा सुना रही हैं। आजादी के 65 वर्ष के बाद आज भी भी नगर में जितने शैक्षणिक संस्थान हैं, उनमें विज्ञान महाविद्यालय भवन को छोड़कर सभी मे नगर के दानदाताओं का योगदान रहा है। इन सबके अतिरिक्त भी हमारे पूर्वज दानदाताओं ने नगर में इतना कुछ निर्माण करवाया कि सही मायनों में मुंगेली को दानदाताओ की नगरी कहा जा सकता है।
मगर दान की इस परम्परा की गति धीमी पडी हमसे पहली वाली पीढी के समय। बीच का काफी बडा कालखंड ऐसा हुआ जब मुंगेली में दानशीलता की यह परम्परा कमजोर पडने लगी। इस गतिरोध को तोडा नगर के युवा नेतृत्व के अग्रणी समाजसेवी श्री अनिल सोनी ने। पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष श्री अनिल सोनी ने अपनी माता स्व. श्रीमती कस्तूरी देवी की स्मृति में करही में मेन रोड पर कलेक्टोरेट भवन के लिए भूमि दान में दी। इस भूमि पर निर्मित विशाल कलेक्टोरेट भवन से पूरे जिले का प्रशासन संचालित हो रहा है। इसी प्रकार बीआर साव धर्मादा ट्रसट के जागरूक सदस्य डा. विनय गुप्ता की पहल और प्रयास के कारण वर्षों तक प्रयास करने के बाद शासन को 30 एकड़ जमीन तथा 60 लाख रुपए का दान देकर पंडरिया मार्ग पर ग्राम चलान में कृषि अभियांत्रिकीय महाविद्यालय का शिलान्यास प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने 9 अप्रैल 2008 को किया। आज यह महाविद्यालय नगर की नई पहचान का आधार बन रहा है।
दानदाताओं की इस परंपरा में सबसे सम्माननीय नाम आता है श्री रामानुज प्रसाद देवांगन का। पेशे से कचहरी में बैठकर सारा जीवन दस्तावेज लेखक का साधारण सा कार्य करते हुए इन्होंने नगर में अपने दान से अनेक समाजोपयोगी कार्य करवाए। आरक्षी केंद्र के सामने इनके द्वारा निर्मित रामानुज देवांगन द्वार वस्तुतः मुंगेली का गेटवे आफ इंडिया है। को आपरेटिव्ह बैंक का पूरा भवन इनके ही दान से निर्मित है। पड़ाव पारा के पास इनके दान से निर्मित रामानुज प्राथमिक शाला एक ऐसा स्कूल रहा है जहां पर आसपास के गरीब व पिछड़े वर्ग के छात्रों ने ज्ञानार्जन किया; इसी भवन में 25 वर्ष तक एसएनजी कालेज की कक्षाएं लगती रहीं। नगर के शासकीय चिकित्सालय में श्री देवांगन ने एक्सरे रूम का निर्माण करवाया। इसी परिसर में उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की प्रतिमा स्थापित करवाई जिसका अनावरण तत्कालीन राज्ससभा सदस्य तथा विख्यात फिल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने की थी।
दानशीलता की प्रवृत्ति के इस क्रम में पूरे क्षेत्र में अग्रणी स्व. श्री रामलाल साव का नाम आदर से लिया जाता है। अपने जीवनकाल में ही इन्होंने हाईस्कूल के नाम से विख्यात भवानी साव रामलाल साव शासकीय बहुद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हेतु दान दिया। यह स्कूल सालों-साल से पूरे क्षेत्र में अविरल रूप से ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर रहा है। अविभाजित मध्य प्रदेश का यह अकेला ऐसा विद्यालय था जिसमें कला-विज्ञान-वाणिज्य एवं कृषि विषय की पढ़ाई होती थी। मुंगेली क्षेत्र आज भी औद्योगिक प्रगति के क्षेत्र से अलग कृषि प्रधान रहा है। कृषि की उपादेयता को युवा पीढ़ी व्यावहारिक रूप से समझे, इस हेतु उन्होंने रायपुर रोड पर 6 एकड़ जमीन भी दान में दी।
यह शाला मुंगेली के गौरवशाली अतीत की जीवंत निशानी है। यहां पर अध्ययन कर जीवन संग्राम में उतरे हजारों छात्रों ने देश-समाज-नगर की प्रगति में अपना गौरवशाली योगदान दिया है। श्री रामलाल साव ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रम्भाबाई की स्मृति में कन्या शाला का निर्माण करवाया। नगर की एकमात्र कन्या शाला में आज भी हजारों की संख्या में छात्राएं अध्ययनरत हैं।
इसी दानवीर साव परिवार के महिला रामप्यारी बाई के द्वारा दान में दी गई राशि से निर्मित रामप्यारी बाई बाल मंदिर सन 1973 से संचालित हो रहा है। आज भले ही नर्सरी व के.जी. वन की कक्षाएं हर प्राइवेट शालाओं में संचालित हो रही हैं मगर एक समय था जब नन्हे बच्चों के लिए इस बाल मंदिर के अतिरिक्त और कोई दूसरा संस्थान मुंगेली में नहीं था।
शिक्षा के ही क्षेत्र में दूसरा युगांतकारी प्रभाव डाला मुंगेली के जमींदार गोवर्धन परिवार ने। इनके दान ने शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसी कमी को दूर किया कि जिसकी कोई मिसाल नहीं। सन 1964 के पहले तक पूरे मुंगेली क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए कोई महाविद्यालय नहीं था। यहां के छात्रों को स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद बिलासपुर या रायपुर जाना पड़ता था। सामान्य परिवार के प्रतिभावान छात्रों के लिए बाहर जाकर पढ़ाई कर पाना आर्थिक रूप से संभव नहीं होने से सैकड़ों छात्रों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती थी। ऐसे समय में गोवर्धन परिवार ने क्षेत्र की इस कमी को समझा और रायपुर रोड पर 12 एकड़ जमीन तथा 20 हजार रुपए का दान देकर अपने परिवार की माता श्रीमती नानीबाई गोवर्धन के नाम पर महाविद्यालय की शुरुआत की। गोवर्धन परिवार के ही श्री केशवराव गोवर्धन ने सन 1964 में विनोबा भावे के मुंगेली आगमन पर भूदान आंदोलन के आव्हान से प्रेरित होकर अपने ग्राम पेंडाराकापा के पास 5 एकड़ जमीन दान में दी। आज विनोबा नगर के नाम से जानी-पहचानी बस्ती श्री केशवराव गोवर्धन की दानशीलता का याशोगान कर रही है। भूदान आंदोलन में ही मुंगेली के प्रतिष्ठित जमींदार मिश्रा परिवार के ज्वाला प्रसाद मिश्रा ने ग्राम लिम्हा में जमीन दान में दी थी।
एक और दानदाता श्री भीखमचंद पारख हुए जिन्होंने अपनी दानवीरता से जैन समाज को यश दिलवाया। दाउपारा में उनके द्वारा बनवाया गया धर्मशाला आज इतने वर्ष के बाद भी आगंतुकों के रात में रूकने का सस्ता सहारा बना हुआ है। एक समय नगर में जब सार्वजनिक कार्यों के लिए जगह की कमी थी, स्कूल के भवन ही एकमात्र सहारा थे तब श्री पारखजी के द्वारा गोल बाजार में एक विशाल भवन का निर्माण करवाया गया जिसका लोकार्पण स्वामी आत्मानंदजी के द्वारा किया गया था। आज नगर में अनेकों सार्वजनिक भवन निर्मित होने के बाद भी ओसवाल भवन के नाम से पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध इस भवन की सालों साल उपयोगिता बनी रही हैं। नगर की एक और शान कंवरलाल बैद ओसवाल भवन है। जैन समाज द्वारा निर्मित इस भवन ने सही मायनों में नगर में सामाजिक कार्यक्रमों के लिए व्यवस्थित भवन की कमी को पूरा किया। नगर के धनपति श्री कंवरलाल बैद इस भवन निर्माण में सहयोग के लिए प्रथम दानदाता के रूप में सामने आए। और यह भवन उनके नाम पर समर्पित किया गया। नगर के प्रतिष्ठित कपड़ा व्यवसायी श्री तेजमल गोयल ने बारिश में आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए बस स्टैंड में धर्मशाला का निर्माण करवाया। इसी प्रकार ग्राम छटन के मालगुजार श्री हरिप्रसाद गुप्ता द्वारा शासकीय विश्राम गृह के पास निर्मित धर्मशाला देखरेख के अभाव में बंद सरीखा पड़ा है।
भारतीय संस्कृति के अनुरूप शिक्षा प्राप्त करने के उदृदेश्य से मुंगेली में प्रारंभ किये गए सरस्वती मंदिर के भवन के लिए भूति का दान स्वर्णकार समाज मुंगेली द्वारा दिया गया। सरस्वती शिशु मंदिर का पूरा भवन ही जन सहयोग से निर्मित हुआ है। इसके संस्थापक संचालक श्री फूलचुद जैन ने इस विद्यालय के भवन के लिए 50 पैसे तक का सहयोग लेकर इस भवन का निर्माण करवाया है। जन सहयोग से ही पेंडाराकापा के पास सरस्वती शिशु मंदिर आज विशालकाय आवासीय विद्यालय के रूप में पूरे क्षेत्र के विद्यार्थियों को ज्ञानदान दे रहा है।
नगर में दो सार्वजनिक वाचनालय व लाईब्रेरी का निर्माण क्रमश: श्री रामानुज देवांगन तथा श्रीमती विठाबाई मोहरे की स्मृति में उनके परिजनों ने करवाया। महामाई मंदिर के पास पुत्री शाला के नाम से विख्यात शाला का निर्माण सन 1918 में रामप्रसाद साव एवं बड़ा बाजार के पास स्थित रमाबाई पांडे शाला का निर्माण क्षेत्र के प्रसिद्ध दानवीर श्री जनकलाल पांडेय के परिजनों ने कराया। इसी प्रकार से एक जमाने में आंखों के इलाज के लिए भारत भर में विख्यात मिशन अस्पताल के लिए 90 एकड़ जमीन का दान ग्राम भीमपुरी के जमींदार मुस्लिम परिवार के द्वारा दिए जाने की जानकारी मिलती है। इसी भूमि पर पूरा मिशन परिसर बसा हुआ है।
मुंगेली नगर में दान की गौरवशाली परम्परा से अनेक ऐसे जनोपयोगी कार्य हुए होंगे जिनकी जानकारी मुझे नहीं है। इसके लिए कश्टसाध्य अनुसंधान की जरूरत है। अंत में मुंगेली क्षेत्र के इन दानवीरों को श्रद्धा सहित नमन करते हुए आशा करता हूं कि दानशीलता की यह परम्परा सतत् चलती रहेगी।