लेखक की कलम से

हार और जीत …

लघु कथा

 

अरी सुमन सवेरे से अखबार में घुसी हुई है। आज चाय नाश्ता भी करवाएगी या दोपहर में भी भूखा सोना पड़ेगा,सुमन नहीं काकी जी आप भी ना कैसी बातें करती हो, चाय नाश्ता अभी आपके कमरे में लेकर ही आ रही थी। लेकिन सोचा एक नजर आज के अखबार पर भी डाल लू,काकी क्यों ? आज के अखबार में ऐसा क्या खास है ।

सुमन खास ही नहीं काकी जी बहुत खास है। काकी सोने के भाव आसमान छू गए क्या ? नहीं काकी जी पड़ोसी राज्य के चुनाव परिणाम आए हैं। अच्छा ला चाय पिला पहले फिर विस्तार से बता मुझे कौन जीता कौन हारा,सुमन मन में सोचने लगी काकी की उम्र सत्तर वर्ष हो गई । वह क्या जाने राजनीति का ज्ञान, काकी जी अखबार में तस्वीरों को एकटक निहार रही थी।

तस्वीरों को निहारते हुए बोली सुमन तू सवेरे से अखबार पढ़ रही है,जरा बताना तो जीतने वाले की जीत का कारण और हारने वाले की हार का कारण क्या रहें।सुमन मुस्कराई और बोली काकी जी मुझे तो आज तक घर की राजनीतिक समझ नहीं आई,यह तो बहुत दूर की बात है काकी जी बोली फिर काहे को सवेरे से अखबार में माथा खफा रही थी।

अच्छा काकी जी आप को समझ में आती है यह राजनीति,अरे क्यों नहीं बेटा, सुमन बोली तो कुछ मुझे भी बताओ ना यह जीतने वाले जीते कैसे और हारने वाले हारे कैसे। अरे तू भी ना जीतने वाले जीते अपने बुद्धिबल पर उन्होंने प्रत्येक वोटर के मन को जीता और हारने वाले इसलिए हारे क्योंकि वो वोटर को रिझा नहीं पाए।

अच्छा अब क्या ?

काकी जी अब कुछ नहीं जीतने वाले जीत का जश्न मनाएंगे । यह दिवाली हर्ष और उल्लास से मनाएंगे और हारने वाले अपनी हार का चिंतन शिविर लगाएंगे और हार का दोषी किसी एक को ठहराएंगे । सुमन बोली कि काकी जी आप तो पढ़ी लिखी भी नहीं है फिर आपको इतना ज्ञान कहां से आया। अरे सुमन,तू क्या जाने सामाजिक गतिविधियों को,बरसों से तेरे काका के साथ शादी समारोह, धार्मिक कार्यक्रमों और गांव की महिलाओं के साथ उठना बैठना रहा है तेरी काकी का।

यह तो पिछले साल तेरे काका के जाने के बाद में घर में बैठी हुईं हूं। नहीं तो मेरे पैरों में तो चक्र लगे हुए थे। अब घर में बैठे-बैठे ही देश विदेश में होने वाली घटनाओं, कार्यक्रमों को बिरजू के फोन है,ना उसमें देख लेती हूं । सुमन काकी जी को देखती रह गई।

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                

 

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