लेखक की कलम से

दक्षिण अमेरिका के सूरीनाम देश में प्रेमचंद जयंती …

भारत से 16000 मील दूर दक्षिण अमेरिका के उत्तरार्ध पर स्थित सूरीनाम देश की, हिंदी को समर्पित शीर्षस्थ संस्था सूरीनाम हिंदी परिषद की साहित्यिक इकाई विद्यानिवास साहित्य संस्थान ने 31 जुलाई 2021 को प्रेमचंद पर चर्चा व काव्य गोष्ठी का आयोजन किया। संचालिका ज्योति महादेव मिसिर ने स्वागतोपरांत मधुर स्वर में गणेश वंदना प्रस्तुत की। इसके बाद विद्यानिवास साहित्य संस्थान के अध्यक्ष धीरज कंधई ने सभी का औपचारिक स्वागत करते हुए, सूरीनाम हिंदी परिषद के नए अध्यक्ष सत्यानंद परमसुख से परिचय कराया।

इस अवसर पर हिंदी शिक्षक विशाल लछमन ने प्रेमचंद के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। भारत से विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद के निदेशक गंगाधर वानोडे ने भी प्रेमचंद के साहित्य की बारीकियों को उकेरा। सूरीनाम के विश्विद्यालय आन्तन द कॉम यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर डॉ. वेलमोद द बोअर ने सूरीनाम की भाषिक स्थिति पर प्रकाश डाला और साहित्यकारों को साहित्य सृजन के लिए प्रोत्साहित किया।

विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित भारत सरकार, गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की अधिकारी व सूरीनाम में अताशे हिंदी व संस्कृति के रूप में हिंदी प्रचार प्रसार का कार्य कर चुकी श्रीमती भावना सक्सैना ने साहित्य के प्रति मुंशी प्रेमचंद के विचारों का उल्लेख करते हुए, सूरीनाम के साहित्यकारों से साहित्य सृजन में निरंतरता बनाये रखने और गति लाने की अपील की। धीरज कंधई ने उल्लेख किया कि श्रीमती सक्सैना द्वारा लिखी पुस्तक ‘सूरीनाम में हिंदुस्तानी, भाषा साहित्य व संस्कृति’, आज भी सूरीनाम में पढ़ी व पढ़ाई जाती है। इस शोधात्मक पुस्तक के अतिरिक्त आपने सूरीनाम के साहित्य पर 4 पुस्तकों का संपादन भी किया है। धीरज कंधई ने सूरीनाम में हिंदी के स्तम्भ रहे हरिदेव सहतू को याद करते हुए उनकी कविता महतारी भाषा हमार का वाचन किया।

इस अवसर पर गायत्री नारी समाज द्वारा प्रस्तुत पारम्परिक सोहरों ने सभी को मंत्रमुग्ध किया।वरिष्ठ हिंदी शिक्षक श्रीमती कारमेन जानकी, कवयित्री श्रीमती सन्ध्या भग्गू, सुदेश हीरा, सुशांतिनी रघुबीर व नम्रता बोहोरी की काव्य प्रस्तुति सराहनीय रही। सूरीनाम हिंदी परिषद के अध्यक्ष परमसुख ने बताया कि परिषद हिंदी शिक्षण व हिंदी साहित्य में वृद्धि के लिए निरन्तर प्रयासरत है।

उल्लेखनीय है कि सूरीनाम में हिंदी 148 वर्ष पहले गिरमिटिया मजदूरों के साथ पहुंची थी और आज उनकी चौथी व पांचवी पीढ़ी भी हिंदी व हिंदुस्तानी संस्कृति को समर्पित है। वहाँ विभिन्न मंदिरों में लगभग 100 हिंदी पाठशालाएं व करीब 80 हिंदी शिक्षक हैं जो सक्रियता से हिंदी शिक्षण कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप हर वर्ष 700 से अधिक छात्र हिंदी परिषद द्वारा आयोजित विभिन्न स्तरों की हिंदी की परीक्षाएं देते हैं।

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