लेखक की कलम से
तुम चले जाओगे …
तुम चले जाओगे
पर तुम्हारा
कुछ अवशेष
रह जाएगा मुझ में,
जीवनपर्यंत ….
ठीक वैसे ही
जैसे रेत से निर्मित
सुंदर संसार
ढहकर भी
शेष छोड़
जाता है अपना निशा…..
जैसे प्रचंड वर्षा के पश्चात
जल की बूंदे
रह जाती
यहाँ-वहाँ
जैसे अमावस्या के
अंधरात्रि में भी
कहीं न कहीं
शेष रह जाता है
तारकों सह रवि का ताप
जैसे मुरझाए पुष्पों में भी
शेष रह जाता
सौरव यंत्र तंत्र
जैसे विनाश पश्चात भी
वसुधा में कहीं
छुपा रहेगा सृष्टि का अंकुर
अनंत काल तक
ठीक वैसे ही
तुम चले जाओगे
पर मुझ में आश्रय पाओगे
अदम्यता के साथ
मेरी मुक्ति के क्षणों में भी
तुम कभी जाकर भी
नहीं जा पाओगे
मुझसे दूर
मेरे प्रिय……
©अल्पना सिंह, शिक्षिका, कोलकाता