लेखक की कलम से
बेटी……
बेटी जिस घर में आती हैं,
हजारों खुशियाँ लाती है।
बेटी जिस घर से जाती हैं,
लाखों दुआएं दे जाती हैं।
बेटी अनमोल खजाना है,
यह लोगों का है कहना।
बेटी तो सुख समृद्धि है,
दो दो कुल का है गहना।।
कोई कहता यह धूल है,
कोई कहता यह फूल है।
परिस्थिति चाहे जो भी हो,
हर रूप में इसे क़ुबूल है।।
बेटी मायके की बहार है,
तो ससुराल का श्रृंगार है।
बेटी पिता का संस्कार है,
और जग का व्यवहार है।।
मर्यादा में रहे तो सीता हैं,
कर्मों से साक्षात गीता है।
रणचंडी बने वो काली सी,
मीरा बन जहर पीता है।।
बेटी को मानों कल्पवृक्ष,
सबको सब कुछ देती हैं।
माँ बाप के दुःख दर्दों को,
पल भर वो हर लेती है।।
©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)