लेखक की कलम से

नशा एक अभिशाप …

 

शराब, सिगरेट, चरस, गांजा या कोकीन  नशा जिस चीज़ का भी हो खतरनाक और जानलेवा ही होता है। आजकल की पीढ़ी का एक वर्ग इन सारी चीज़ों का सेवन करते नशेड़ी होता जा रहा है। कुतूहल से शुरू होने वाला ये नशा कब तलब बन जाता है पता ही नहीं चलता। छोटे शहर का इंजीनियर कक्षा का लड़का सुशांत बड़े सपने लेकर मुंबई स्टार बनने आया मेहनत की, टीवी के छोटे पर्दे से लेकर बड़े पर्दे तक पहुँच कर नाम, दाम, शोहरत कमाई लोगों का चहिता बना। इन सबके बावजूद एसी कौन सी परिस्थिति उत्पन्न हुई की मानसिक तौर पर अवसाद से घिर गया और नशीले ड्रग्स का सेवन करने की कगार पर पहुँच गया।

फ़िल्म इन्डस्ट्री की बड़ी शख़्सीयतों की बड़ी-बड़ी पार्टियों में ये सारी चीज़े आम होती है और कोर ग्रुप का हिस्सा तभी बनाया जाता है जब ये सारी चीज़े अपनाओ। ना कहने पर खुद को सब नीचा और छोटी सोच वाला ना समझ ले ये सोचकर पीने पिलाने वाली रस्म निभाते व्यसनी बन जाते होंगे। जहाँ पैसा प्रसिद्धि ग्लैमर है वहाँ ड्रग एब्यूज़ और शारीरिक शोषण अपनी जगह बना ही लेता है।

एक होनहार लड़के की मानसिक हालत जहाँ ठीक नहीं थी वो साइक्याट्रिस की दवाई ले रहा था उसके साथ उसे ड्रग्स का आदी बनाकर खुदखुशी की कगार तक ले जाने के पीछे बहुत बड़ा मकसद छुपा होगा। आशास्पद युवा एक्टर्स या क्रिकेटर जब नये-नये आते है तब उनके उज्जवल भविष्य को देखने वालों को कुछ ही समय में उनकी भूलों के परिणाम स्वरूप उनकी निष्फ़लता देखने को मिलती है। अब ये बदी धीरे-धीरे हर क्षेत्र में फैल रही है। जाने अन्जाने ये नशीले पदार्थ हमारी निज़ी ज़िंदगी में प्रवेश कर चुके है। ड्रग मतलब चरस गांजा हेरोइन या शराब ही नहीं शरीर के लिए हानिकारक तत्वों वाले कैमिकल घर-घर बसेरा करने लगा है। जैसे कफ़ सिरप, नींद की गोलियां, सिगारेट के साथ विड गांजा चॉकलेट की तरह हर जगह उपलब्ध है। समाज को दीमक की तरह बर्बाद करने वाले ड्रग माफ़िया के आगे पुलिस और सरकार लाचार क्यूँ है ? क्यूँ उस पर ऊँगली उठाने वालों को अपनी ज़िंदगी से हाथ धोने पड़ रहे है। एनसीबी को सख्ती से काम लेकर कारवाई करनी होगी। ड्रग से जुड़ी हर कड़ी को बेनकाब करके समाज को इस बदी से उभारना चाहिए।

सवाल ये है की एसा क्या कारण है जो आज का युवा वर्ग अवसाद से घिरकर इन सब चीज़ों के प्रति आकर्षित होते अपनी करियर और ज़िंदगी को दांव पर लगा लेते है। मादक द्रव्यों के बढ़ते हुए प्रचलन के लिए आधुनिक सभ्यताओं को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। जिसमें व्यक्ति यांत्रिक जीवन व्यतीत करता हुआ भीड़ में इस कदर खो गया है कि उसे अपने परिवार के लोगों का भी ध्यान नहीं रहता है। नशा एक अभिशाप है, एक ऐसी बुराई जिससे इंसान का अनमोल जीवन मौत के आगोश में चला जाता है एवं उसका परिवार बिखर जाता है।

इन सबके पीछे घर के हालात, माँ-बाप से कनवरसेशन की कमी, आर्थिक समस्या, सामाजिक बोझ जैसे बहुत से हालात भी शायद ज़िम्मेदार हो। पर कोई भी समस्या खुद की ज़िंदगी से बड़ी या अहम नहीं। नशा आपको थोड़ी देर के लिए सबकुछ भुलाने में सहायक होता होगा पर नशा उतरते ही समस्या तो वहीं की वहीं है उपर से शरीर और दिमाग पर उसका विपरित प्रभाव आहिस्ता-आहिस्ता आपको खत्म कर देगा। क्यूँ नहीं समझते की जान है तो जहान है। नशा या खुदकशी समस्या का हल नहीं ज़िंदगी जंग है लड़कर जितनी चाहिए ना की संघर्ष के आगे घुटने टेक कर खुद को नशे का आदी बनाकर बर्बाद कर लें।

 

      ©भावना जे. ठाकर    

Back to top button