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शत्रु के शत्रु को मित्र मानें……

के. विक्रम राव

नई दिल्ली। विदेश नीति नीति उस गणराज्य के राष्ट्रीय हितों से निर्दिष्ट होती है। ये हित भी समय के अनुसार परिवर्तनशील होते हैं। इन मान्य सिद्धांत को एस.जयशंकर जानते हैं। विचारक और कूटिनीतिक के. सुब्रमण्यम के इस पुत्र को विरासत में समस्त अनुभव प्राप्त हुये हैं। एक नियम उसमें है कि शत्रु का शत्रु अपना मित्र होता है। मोदी सरकार की विदेश नीति को इसी चाणक्यकालीन नियम को स्वीकारती है।

अतः इस्लामी ईरान अब भारत का सुहृद होगा क्योंकि इस्लामी पाकिस्तान से उसकी रार ठन गयी है। कुछ वर्ष पहले इस्लामी राष्ट्रों के संगठन (ओआईसी) का सदस्य ईरान कश्मीर पर पाकिस्तान का समर्थक रहा। बल्कि बाग्लादेश मुक्ति संघर्ष के समय मार्शल आगा मोहम्मद याह्या खां पाकिस्तान के राष्ट्रपति और शिया मतावलम्बी थे। स्वाभाविक है शिया ईरान शिया मार्शल याह्या खान का बिरादर था।

मगर अब सुन्नी-बहुल पाकिस्तान और शिया ईरान में बैर और दूरी बढ़ती जा रही है। अतः भारत को अपनी पाकिस्तान नीति में ईरान फैक्टर को समाहित करना होगा। इसी परिवेश में गत सप्ताह की सामरिक घटनाओं पर भारतीय विदेश मंत्रालय को विशेषकर ध्यान देना होगा।

इस्लामी (शिया) ईरानी गणराज्य की सेना ने इस्लामी जम्हूरियाये (सुन्नी) पाकिस्तान पर गत माह सर्जिकल स्ट्राइक की। वह तीसरा राष्ट्र था। पहला अमेरिका था। आतंकी ओसामा बिन लादेन को राजधानी इस्लामाबाद के निकट हवेली में घुसकर उसकी नौसेना ने मार डाला था। दूसरा भारत की मोदी सरकार द्वारा था। इसने पुलवामा के शहीदों का बदला बालाकोट आतंकी शिविर पर बमबारी द्वारा लिया। एशियाई नीति निरूपित करते समय भारत को इस तथ्य पर गौर करना होगा।

इस्लामी ईरान का पाकिस्तान पर स्ट्राइक वस्तुतः जिहाद था। शिया ग्रंथों के नियमानुसार हिंसक और मजहब के नाम पर कुफ्राना-हरकतें करने वालों की हत्या खुदा की सेवा करना है। संवाद समितियों की खबर है कि ईरान के विशेष सैनिकों ने गत मंगलवार रात पाकिस्तान में घुसकर उसके आतंकियों को मारा और तीन साल से बंदी बनाकर रखे गये अपने दो सैनिकों को रिहा करके ले गये। सूत्रों के अनुसार इस दौरान आतंकियों को बचाने में कुछ पाकिस्तानी सैनिक भी मारे गये।

ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड (आईआरजीसी) मुख्यालय ने बयान जारी कर इस ऑपरेशन को सफल बताया हैं। इससे पहले 16 अक्टूबर 2018 में पाकिस्तानी आतंकियों ने ईरान के 12 सैनिकों का ईरान के सीस्तान व बलूचिस्तान से लगी सीमा से अपहरण कर लिया था। ईरान के अनुसार यह घटना उसके मीरजावेह क्षेत्र में हुयी थी। गुप्तचर सूचनाओं के अनुसार पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठन जैश-उल-अदल ने ईरान के इन दो सैनिकों को बंधक बनाकर रखा हुआ था। यहां पाकिस्तानी सेना की एक यूनिट भी तैनात है। ईरान ने इस लोकेशन का पता लगाया और विशेष सैनिकों को कुद्स बेस शिविर से ऑपरेशन पर भेजा। बाकी अपहृत ईरानी सैनिकों को पहले ही छुड़ाया जा चुका है। जैश-उल-अदल एक वहाबी व बलूच सुन्नी मुसलमानों का बनाया आतंकी संगठन है। यहां के रसूखदारों से उसकी फंडिंग होती है और बदले में वह दक्षिण-पूर्वी ईरान में नागरिकों व सैनिकों पर आतंकी हमला करता रहा है। वहीं ईरान ने कई बार पाकिस्तान को आतंकी गतिविधियां रोकने के लिए चेताया है, लेकिन हमले जारी रहे। अदल को कई देश प्रतिबंधित कर चुके हैं।

जैश-उल-अदल या जैश-अल-अद्ल एक सलाफी जिहादी आतंकवादी संगठन है जो मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्वी ईरान में संचालित होता है। सुन्नी बलूचियों की पाकिस्तान के सुन्नियों के साथ मित्रता है। यह समूह ईरान में नागरिकों और सैन्य कर्मियों के खिलाफ कई हमलों के लिए जिम्मेदार है। ईरान का मानना है कि यह समूह सुन्नी अल-कायदा से जुड़ा हुआ है। समूह ने अंसार-अल-फुरकान के साथ भी संबंध बनाए रखे जो ईरान में संचालित एक अन्य ईरानी बलूच सुन्नी सशस्त्र समूह है। इस आधारभूत तत्थों के आधार पर ही ईरान भारत से दोस्ती गहरी बना सकता है। इसे भारत को स्वीकारना चाहिये।

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