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पहले कर्तव्य निभाएं फिर बात करें अधिकारों की …

26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान को पहली बार अपने देश में प्रभावी किया गया था। संविधान भारत की सामूहिक चेतना का जीवंत दस्तावेज है। संविधान में हमारे लिए मौलिक अधिकार है तो कुछ कर्तव्य भी। हम जब तक अपने कर्तव्य का निर्वाह नहीं करेंगे तब हम अधिकारों को हासिल करने के लिए अनुकूल माहौल भी नहीं बना सकेंगे। गणतंत्र दिवस के मौके पर  हमें यह संकल्प भी लेना चाहिए कि हम संविधान में निश्चित किए गए कर्तव्यों के निर्वाह भी करें।

संविधान में हमारे अधिकार हैं तो कुछ कर्तव्य भी हैं। हमें इन कर्तव्यों का पालन हर हाल में करना चाहिए तभी अपना देश निरंतर उपलब्धि की नवीन ऊंचाइयों को छू सकेगा। बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान के कर्तव्यों की सूची में यह भी है कि देश के सभी भागों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का विकास करें जो धर्म,भाषा,प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावों से परे हो और ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।

लेकिन आज इस कर्तव्य को निभाने में हम पूरी तरह पीछे हैं। न भाईचारा विकसित हो रहा है, और ना ही स्त्रियों के सम्मान में बढ़ोतरी हो रही है। वैसे तो 11 कर्तव्य है इनमें इस बात पर देश के नागरिक कुछ खास करते नहीं दिखते। बाकी के कर्तव्यों में यह है कि हम संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों,संस्थाओं,राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।

स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखने और उनका पालन करें। भारत की संप्रभुता, एकता व अखंडता की रक्षा करें और उसको अक्षुण्ण बनाए रखें। राष्ट्र की रक्षा करें और बुलाए जाने पर राष्ट्र कि सेवा करें।

भारत की समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और संरक्षण करें। वन, झील, नदी और वन्य जीव आदि प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें। प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें। वैज्ञानिक दृष्टिकोण,मानवता,ज्ञानार्जन और सुधार की भावना का विकास करें। सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें व हिंसा से दूर रहें। व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों के उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें, ताकि राष्ट्र निरंतर प्रगति व उपलब्धियों की नवीन ऊंचाइयों को छू सके।

हम संविधान में उल्लेख इन कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करें तो स्त्रियों का सम्मान बढ़ेगा। बेजुबान पशुओं का कल्याण होगा। नदियां बचेंगी। पर्यावरण का भी संक्षरन होगा। देशवासियों से अपील करती हूं कि वे केवल अधिकारों के लिए ही संघर्ष नही करें बल्कि अपने कर्तव्य भी निर्वाह करें।

 

©हेमलता म्हस्के, पुणे, महाराष्ट्र                                   

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