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हथिनी की मौत पर उठ रहे कई सवाल …

पुणे (हेमलता म्हस्के)। केरल के मलप्पुरम में गर्भवती हथिनी की मौत पर पूरे भारत में गुस्सा है और इसी के साथ बेजुबान पशुओं के प्रति हमारे रुख और रुझान को लेकर कई सवाल भी उठ गए हैं। हथिनी की मौत बीस दिन पहले हुई बताई जाती है। यह मामला तब सामने आया जब हाल ही में एक वन अधिकारी कृष्ण मोहन ने फेसबुक पर हथिनी के बारे में कुछ जानकारी पोस्ट की। नहीं तो किसी को पता भी नहीं चलता कि किसी हथिनी की मौत हुई और स्थानीय प्रशासन भी पूरी तरह बेखबर ही रहता।

अब जब हथिनी का मामला सुर्खियों में छा गया है तो इस पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भी नाराजगी दिखाई है। साथ ही कहा है कि केंद्र सरकार इस घटना की जांच कराने और दोषियों को पकड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। यह पहली बार देखने को मिल रहा है कि किसी बेजुबान पशु की मौत पर सारा देश गुस्से में है, नहीं तो बेजुबान पशुओं को लेकर शायद ही इस तरह का कभी कोई गुस्से का माहौल बना हो। सचमुच हथिनी की मौत ने मानवता पर अनेक गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या हम एकदम संवेदनशून्य हो गए हैं? हम उन पशुओं को भी नहीं बख्श रहे हैं जो सदियों से हमारे लिए जीते आए हैं।

 क्या हम वैसे समाज में रह रहे हैं जहां अपने सिवा और किसी की चिंता हमें नहीं सताती? क्या यह शर्मनाक नहीं है कि मनुष्य के समाज में बेजुबान पशुओं पर अत्याचार जानबूझकर किया जाता है। आए दिन बेजुबान पशुओं पर अत्याचार कर हैवानियत का जश्न मनाया जाता है। इसका एकमात्र कारण यह है कि हम बेजुबान पशुओं के प्रति पूरी तरह उदासीन हैं। अक्सर देखा जाता है कि हम इन पशुओं की देखभाल की ओर ध्यान नहीं देते लेकिन उन पर अत्याचार करने के लिए हम हमेशा उतारू हो जाते हैं। क्या बेजुबान पशु मनुष्य की तरह ही कुदरत का हिस्सा नहीं है ? आए दिन बेजुबान पशुओं की निर्मम हत्या की जाती है। उन्हें मारपीट कर बुरी तरह घायल कर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है, क्या यह मनुष्य समुदाय के लिए शोभनीय है? एक गर्भवती हथिनी की विस्फोटक भरा अनानास खाने से हुई मौत ने उन गंभीर सवालों को खड़ा कर दिया है, जिनका जवाब जल्द खोजना होगा नहीं तो इन पशुओं की संख्या भी विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाएगी।

मीडिया के शोध के मुताबिक अपने देश में करीब एक दशक पहले तक हाथियों की संख्या 10 लाख थी लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 27000 से भी कम रह गई है हाथियों के मौत के मामले में केरल राज्य अग्रणी है वहां हर दिन में एक हाथी की मौत हो जाती है। भारत में 6000 साल पहले इंसानों ने हाथियों को पालना शुरू किया था। अब उनके साथ अमानवीय व्यवहार बढ़ने लगा है बताते हैं हाथियों की संख्या अपने देश में इसलिए भी घट रही है कि हम अवैध शिकार को रोक नहीं पा रहे हैं। हाथियों का अवैध शिकार उसके बेशकीमती दांतों के कारण किया जाता है जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में ही बहुत मांग है। हाथी भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसूची वन में और पशु पक्षियों की संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में शामिल है। हाथी के साथ सदियों से बना हुआ रिश्ता हमारा पर्यावरण, हमारा परिवेश और हमारी सोचने समझने की दृष्टि में बहुत ही नकारात्मक परिवर्तन के कारण बेहद खराब होता जा रहा है। ऐसे में बेजुबान पशु क्या, मनुष्य के बचे रहने पर भी संकट आ गया है

केरल के वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक हथिनी की पिछले दिनों मौत हो गई, उसकी उम्र 14-15 साल रही होगी। घायल होने के बाद वह इतनी पीड़ा में थी कि तीन दिन तक वेलियार नदी में खड़ी रही और उस तक चिकित्सीय मदद पहुंचाने के सभी प्रयास नाकाम रहे। इस दौरान उसका मुंह और सूंढ़ पानी के भीतर ही रहे। हथिनी अपने दर्द का बयान मनुष्य की तरह नहीं कर सकी लेकिन उसने तीन दिनों तक कितनी पीड़ा झेली! इसकी कोई कल्पना कर महसूस कर सकता है कि हथिनी ने कितना सहा।

हथिनी के पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि पटाखों से भरा अनानास खिलाए जाने से हथिनी के मुंह में विस्फोट हुआ जिसके चलते उसके काफी घाव हो गए थे। बेहद गहरे घाव की वजह से हथिनी कुछ खा भी नहीं पा रही थी जिस कारण कमजोरी की वजह से वह पानी में गिर कर डूब गई। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि पानी में डूबने के कारण हथिनी के फेफड़ों में पानी भर गया था।

आज कोरो ना से डरे हुए देश में अपनी जान बचाते हुए लोगों के बीच बेजुबान गर्भवती हथिनी की मौत मनुष्य के हाथ से होती है और उस राज्य में हो जाती है, जो पूरे देश में सबसे अधिक साक्षर माना जाता है। ऐसा लगता है कि साक्षरता की चादर भले ओढ़ ली जा सकती है लेकिन संवेदना तो भीतर अंतर्मन से ही पैदा होती है और यह तब पैदा होती है जब हममें संपूर्ण प्राणी जगत के प्रति प्रेम की अनुभूति हो और उनके प्रति दायित्व का बोध हो। हम ऐसे तथाकथित विकास की अंधी दौड़ में शामिल हो गए हैं जो सभी के लिए विनाशकारी साबित हो रही है। यह उल्लेखनीय है कि हम जब तक बेजुबान पशुओं के प्रति प्यार पैदा नहीं कर सकते तब तक हमारे दिल में मनुष्यता के प्रति भी कोई संवेदना नहीं रहेगी।

हथिनी की मौत ने पूरे देश को वैसे ही दहला दिया है जैसे दो महीने पहले दो जिराफ की निर्मम हत्या से केन्या दहल गया था। दो जिराफ की हत्या पर भी दुनिया भर के पशु प्रेमियों ने सवाल उठाए थे। केरल में न केवल गर्भवती हथिनी की मौत उसके मुंह में विस्फोटक अनानास डाल देने से हुई बल्कि उसके गर्भ में पल रहे शिशु को भी मौत के घाट उतार दिया गया। हथिनी की मौत के मामले की जांच तेज कर दी गई है जबकि यह घटना 20 दिन पहले हुई बताई जा रही है। मामले को सुर्खियां बनने में कितने दिन लगे। अब जब देश के फिल्म स्टार, क्रिकेटर और व्यवसायियों सहित अनेक आम से खास लोगों ने दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग कर दी है तो ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल/ इंडिया ने हथिनी के दोषियों की खोज करने वाले को 50000 रुपए इनाम तक देने की घोषणा कर दी है। इसी तरह एक और संस्था ने एक लाख रुपए देने की घोषणा की है।

वैसे वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत जानवरों को मारने पर 3 साल तक की सजा और 25000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है और दोबारा ऐसा करने पर 7 साल की सजा हो सकती है। लेकिन इस समय लोगों का गुस्सा उफान पर है सोशल मीडिया पर भी लोगों ने हथिनी की मौत का मुद्दा उठाते हुए दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है फेसबुक और ट्विटर पर काफी संख्या में लोगों ने इस मुद्दे को उठाया और कहा कि बेजुबान जानवरों के साथ ऐसी क्रूर कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता लोगों ने इस मामले में सरकार से कड़ी कार्रवाई करने की मांग करते हुए कहा कि कड़ी कार्रवाई करने पर ही भविष्य में ऐसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है। वहीं लाखों लोगों ने हथनी की मौत पर इमोशनल पोस्ट भी की। व्हाट्सएप पर स्टेटस भी लगाया। लोगों ने ऐसे कमेंट सोशल मीडिया पर किए कि हथिनी को मौत ने यह जता दिया है कि हम बेजुबान पशुओं के प्रति गंभीर नहीं हैं।

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