लेखक की कलम से

बरगद की छांव …

 

मुझे अभी भी याद है, जब हम छोटे होते थे दादी हमें कहानियां सुनाया करती थी, ओर वट सावित्री की भी कहानी सुनाती थी, दो- चार बार छुट्टियों में दादी हमें गांव भी लेकर गई और वहां पर हमें बरगद का बहुत विशाल पेड़ दिखाया, जिसे वट वृक्ष भी कहा जाता है।

दादी बताती थी कि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। और हमें वट सावित्री वाली कथा भी सुनाती थी।

जितने दिन हम गांव में रहते उस पेड़ पर अक्सर झूला झूलते थे।

 कभी रस्सी का झुला डाल कर तो कभी इसकी लम्बी – लम्बी मज़बूत टहनियों को पकड़ कर ही झुला करते।

दादी बताती थी कि बरगद को औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। यह पेड़ कार्लसन डाई ऑक्साइड ग्रहण करने का सबसे बड़ा स्त्रोत होता है।

 दादी बताती थी कि उनका स्कूल इसी पेड़ के नीचे ही होता था, क्योंकि गांव में कोई स्कूल नहीं था, तो वहां के अध्यापक इस पेड़ के नीचे बैठा कर पढ़ाया करते थे।

 फिर कुछ समय बाद वहां की पंचायत ने अपना पंचायत घर ही स्कूल के लिए खोल दिया था।

 अब कुछ साल पहले जब हम अपने बच्चो को गांव लेकर गए तो देखा वहां ना कोई पेड़ था, और ना ही वैसी चहल – पहल, अलबत्ता उस जगह एक बहुत बड़ा माॅल बन गया था।

 गांव में बहुत तरक्की हो गई है, लेकिन आज के बच्चों को ना कोई बरगद की छांव नसीब होती है, और ना ही उन्हें बरगद की खुबियों के बारे में कुछ पता है।

को गए हैं कहीं वो गांव और को गए हैं वो बरगद के पेड़।

©प्रेम बजाज, यमुनानगर

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