लेखक की कलम से
काफिले …
जनानियों के काफिले
बहुत निकलते हैं
कभी ढोल के साथ
दुर्गा पूजा के काफिले
कभी विवाह समारोह के कफिले
नहीं निकलते तो
जनानियों के काफिले
मुर्दाघर के दरबारों तक
रह जातीं हैं अकेले
कब्र की दरगाह पर
वहां भी दफन कर दीं जातीं हैं
एक मर्दों के हाथ
रोते रह जाते हैं
जनानियों के काफिले
आंसुओं के साथ
देहरी न लांघने के तक …
©शिखा सिंह, फर्रुखाबाद, यूपी