लेखक की कलम से

शराब बनाम राजनीति …

कथा

 

एक छुटभैया नेता टाइप का व्यक्ति,

शाम ढले, थक हार कर,

अपने घर पहुँचता है।

और घर आकर नौकर,

को कहता है।

अरे सुन ! जरा पास के भट्ठी से,

इंग्लिश वाइन लाना,

औऱ हो सके तो कुछ

चखना -वखना लेते आना।।

 

नौकर ने सहमे हुए से,

शब्दों में कहा, क्या बात है साहब,

आप भी … आप भी शराब पियेंगे।

 

नेता के गुस्से होकर कहा … …

अरे मैं शराब कहाँ पी रहा हूँ।।

मैं तो अपनी थकान मिटाने की,

जुगत कर रहा था … …

 

नौकर ने फिर हिम्मत करके पूछा … …

साहब आप तो शराबबंदी के समर्थन में,

हड़ताल पर गए थे न … … … तो, … फिर …

ये सब … … वहां कुछ … … यहाँ कुछ

 

छुटभैया नेता ने ठहाके लगाते हुए,

कहा … … … अरे इसी का नाम तो पॉलिटिक्स है …

विरोध करना है … इसीलिए विरोध करो … … …

हकीकत में क्या होता है … इससे हमें क्या ?

 

छुटभैया नेता का वह नौकर अवाक होकर

चुपचाप शराब लेने चला जाता है …

और मन ही मन सोचता है …

मैंने सुना था कि शराब सेहत खराब करती है।

पर पहली बार अहसास हुआ शराब से भी कोई,

नशीला, जहरीला और प्राणलेवा भी कोई चीज होती है

और वह है … … … राजनीति … … … …

 

शराब का नशा कभी न कभी छूट भी सकता है,

लेकिन राजनीति का नशा कोरोना से भी भयंकर

होता है … … राम बचाए—–

©श्रवण कुमार साहू, राजिम, गरियाबंद (छग)

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