लेखक की कलम से

शिखर को छूते ट्राइबल्स……

पुस्तक समीक्षा 

‘शिखर को छूते ट्राइबल्स’ के लेखक संदीप मुरारका पेशे से उद्यमी परन्तु हृदय से साहित्यकार हैं। ये झारखंड प्रदेश के साहित्यिक, सामाजिक एवं व्यावसायिक जगत के प्रसिद्ध व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। इस पुस्तक में लेखक ने बड़े मनोयोग से तथ्यों को जुटाकर आदिवासियों के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए  उन 25 जनजातीय महापुरुषों की जीवनियों को पाठकों के समक्ष रखा है जिन्होंने सीमित साधनों के बीच अपने जज्बे से एक ऐसी लकीर खींच दी जिसे पार कर पाना साधन संपन्न,शिक्षित व सभ्रांत कहलाने वाले लोगों के लिए भी सहज नहीं है।

इस पुस्तक में पदमश्री सम्मानित उन 25 आदिवासी नायकों के असाधारण उपलब्धियों तथा संघर्षों को दर्शाया गया है जिनमें से कुछेक को ही लोग जानते हैं बाकी इतिहास के धूल के नीचे दब गए हैं। ये ऐसे नायक – नायिकायें हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी लोक कल्याण व राष्ट्र के लिए दांव पर लगा दिया। फिर भी इतिहास में गुमनाम रहें। अपने कर्मों से इन्होंने सफलता के शिखर को छुआ। इसप्रकार इस पुस्तक का नाम ‘शिखर को छूते ट्राइबल्स’ अत्यंत सार्थक प्रतीत होता है। रोचक व बोधगम्य भाषा में लिखित यह पुस्तक पाठकों को पठनीयता से बांधे रखती है। पुस्तक में जनजातीय नायकों के चुनाव में क्षेत्री और भाषिक विभिन्नता का पूरा ध्यान रखा गया है।
पुस्तक में जनजातीय नायकों के असाधारण उपलब्धियों तथा संघर्षों से लोगों को परिचित करवाने का श्रमसाध्य प्रयास किया गया है, जिन्होंने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति व नियति को अस्वीकारते हुए इतिहास रचा है। अपनी इच्छाशक्ति और अथक परिश्रम के बल पर साहित्य, कला- संस्कृति, समाजसेवा, राजनीति, खेल, तथा स्वतंत्रता संग्राम में अमिट छाप छोड़ी है। असीमित प्रकृतिक सम्पदा के धनी ये आदिवासी अद्वितीय प्रतिभा के भी धनी हैं। इस पुस्तक में 25 वर्ष से लेकर 100 साल के नायकों की गाथाओं को संक्षेप में बड़े करीने से सहेजा गया है। प्रत्येक का व्यक्तित्व हमें विविध रूपों से प्रभावित करने के साथ यह भी साबित करता है कि सफलता की कोई उम्र नहीं होती। सदियों से ये आदिवासी प्रकृति के रक्षण के साथ साहचर्य का जीवन जीते हैं।

इस पुस्तक में पद्मश्री सम्मानित –

★ट्राइबल नायक- नायिकाओं में 72 वर्षीय कर्नाटक की पर्यावरणविद ‘जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया’ के नाम से ख्यात तुलसी गौड़ा गत 60 वर्षों में एक लाख से अधिक पौधों का रोपण कर चुकी हैं।

★ झारखंड की ‘लेडी टारजन’ यमुना टुडू ने माफियाओं से पेड़ों को बचाने की संघर्षपूर्ण मुहिम शुरू की। इनके 300 से ज्यादा समितियां लाठी- डंडों, तीर- धनुष से वनों की रक्षा करती है।

★’कैनाल मैन’ के नाम से प्रसिद्ध दैतारी नायक ने सिंचाई हेतु 3 सालों में अकेले ही पहाड़ को काटकर तीन किलोमीटर नहर बना डाला। जो ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी का स्मरण दिलाता है।

★केरल के तिरुअनंतपुरम के जंगलों के ट्राइबल लक्ष्मीकुट्टी ‘जंगल की रानी’ नाम से जानी जाती है। इन्हें सांप काटने की दवा बनाने में महारत हासिल है।

★मध्यप्रदेश के गोंड कलाकार भज्जू श्याम ने पेंटिंग की दुनिया में विशिष्ट पहचान बनाई है। गोंड पेंटिंग के जरिये देश- विदेश में विख्यात इनके चित्रों की पुस्तक ‘द लंदन जंगल बुक’ पांच भाषाओं में छप चुकी है।

★झारखंड के जनजाति पद्मभूषण सम्मानित करिया मुंडा ने राजनीतिक, सामाजिक क्षेत्र में अथक सुधार किया है। आठ बार सांसद रहे करिश्माई व्यक्तित्व के सरलमना मुंडा जी ने चुनाव में बेहिसाब ख़र्च के विरोध में काम किया।

★उड़ीसा के मयूरभंज जिले में जन्मी ट्राइबल अविवाहित रहकर दमयंती बेसरा ने संथाली भाषा व शिक्षा के क्षेत्र में जीवन समर्पित किया। संथाली भाषा में उनकी यह कविता स्त्री – विमर्श अस्मिता की स्वर बुलंद करती हैं –

“तू नारी है नौकरानी नहीं

आग है तू रख नहीं

लड़की है तू भूसा नहीं

धान है तू घास नहीं ।”

★स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में ‘हुल विद्रोह’ का नारा देने वाले झारखंड के सिदो- कान्हू ‘अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो’ का नारा दिया। मार्क्स ने इस विद्रोह को ‘भारत की प्रथम जनक्रांति’ कहा।

★इसी क्रम में टाना भगत ने ‘टाना आंदोलन’ का मूल मंत्र दिया -“धरती हमारी/ ये जंगल पहाड़ हमारे/ अपना होगा राज/ किसी का हुकुम नहीं/ और ना ही कोई टैक्स लगान या मालिकान।”

★राजस्थान की घुमक्कड़ जाति कालबेलिया में जन्मी गुलाबो सपेरा ने सांपों के बीच पलते- बढ़ते हुए काफी संघर्षपूर्ण जीवन का सामना कर ‘कालबेलिया नृत्य’ को अबतक 165 देशों में प्रस्तुत कर चुकी है।

★बिहार के रघुनाथ मुर्मू ‘संथाली भाषा के सूरज’ कहलाते हैं। इन्होंने संथाली भाषा के लिए लिपि ‘ओला चिकि’ की खोज की।

★इसी क्रम में झारखंड के साहित्यकार गुरु कोल लाको बोदरा ने ‘हो’ भाषा के लिए ह्वारड़ क्षिति की लिपि बनाई।

★रामदयाल मुंडा ने पूरी दुनिया के ट्राइबल्स को संगठित किया। 9 अगस्त को ‘वर्ल्ड ट्राइबल डे’ शुरू करने में उनका अहम योगदान रहा है।

इसके अलावा अलग-अलग क्षेत्रों में झारखंड के नीलाम्बर- पीताम्बर, हॉकी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा, वीरांगनायें फूलो- झानो, मेघालय की ट्रिनिटी साईओ व ओड़िसा की कमला पुजारी ने कृषि क्षेत्र में, संस्कृतिकर्मी मुकुंद नायक, शैक्षणिक क्षेत्र व एक्टिविस्ट के रूप में प्रो. दिगम्बर हांसदा  का देश व मानवता के लिए अमूल्य योगदान रहा।

इस पुस्तक में पद्मश्री सम्मानित जनजातीय महापुरुषों की जितनी तथ्यपरक, संघर्षपूर्ण और अनुकरणीय जानकारियां दी गयी हैं ,वह अन्यत्र दुर्लभ है। इसके अध्ययन से आदिवासियों के अदम्य संघर्ष व जिजीविषा से अनभिज्ञ पाठक उनका परिचय पा सकते हैं। इस पुस्तक में वर्णित रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारियों से विद्यार्थी, लोक संस्कृति व जनजातीय जीवन में रुचि रखने वाले तथा अनुसन्धानकर्ता निश्चय ही लाभान्वित होंगे।

©डॉ उर्मिला शर्मा, हजारीबाग, झारखंड

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