लेखक की कलम से

राह पकड़ अब प्रेम की तू …

हे पथिक, जो तू अडिग है,

मस्त चाल चलने वाला ,

हर पथ ही तुझे भाएगा ,

मस्त रहेगा तू मतवाला |

लाख विपदा सर पटक ले ,

पर तू न हटना पीछे ,

चल चला चल तू अपनी राह ,

लक्ष्य पायेगा तू मतवाला |

अंतस भ्रमण को तू निकला ,

नशा ज्ञान का पीने वाला ,

राह पकड़ अब सद्गुरु की तू ,

मग्न होगा तू भोला भाला ,

कितने  पथ अध्यात्म जगत के ,

जीने की कला बताते है ,

राह पकड़ अब प्रेम की तू ,

पा जायेगा तू  हलाहल वाला |

नशा लेने तू जाता घर से ,

खोजने को मधुशाला ,

मै जाता हूँ अंतस नगरी ,

पीने अपना नशे का प्याला ,

जो नशा खुद से मिलने का,

वो क्या देगा तुझे मधुशाला ,

भूल जरा तू पथ मधुशाला ,

आ जरा आत्मज्ञान की शाला ||

 

 

©अरुणिमा बहादुर खरे, प्रयागराज, यूपी           

 

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