लेखक की कलम से

हमारी तीसरी आंखे …

हमारी आंखे तो सिर्फ वही देखती जिसे हम देखना चाहते हैं। कहने को तो हमारे पास सिर्फ दो ही आंखे हैं ये हम सभी जानते है। पर क्या आपने कभी गौर किया है….हमारे पास एक और भी आंखे हैं जो अदृश्य हैं, जिसे हम देख नहीं पाते पर महसूस जरूर कर सकते हैं। वो तीसरी आँख के कारण ही हमारी दोनों आंखे अपनी प्रतिक्रियाएं करतीं हैं ….वो तीसरी आंखे हमें बतातीं हैं कि हमने सही देखा या गलत।

अक्सर हम सब कशमकश में होते हैं। क्या हमने सही देखा या गलत, इसका कारण यह है हमने जिस चीजों को देखा या सुना उसे ही मान लेते हैं और अपने नतीजा पर तत्काल पहुंच जाते हैं। और हर बार की तरह पछताने पर मजबूर हो जाते हैं। खुद को दोषी या दूसरों को दोषी ठहराते हैं। काश ऐसा होता…..काश ऐसा नहीं होता यही उधेड़बुन में अपना समय नष्ट कर देते हैं। यदि हम उस समय अपनी तीसरी आंखों का उपयोग करते या महत्व देते तो ऐसा पछतावा करने का अवसर ही नहीं आता।

आप शायद जानते होंगे, या जानने की कभी कोशिश ही नहीं किए होंगे। या फिर मुझे कहते होंगे तीसरी आंखो के बारे में क्या चर्चा कर रही है जब कि हमारे पास सिर्फ दो ही आंखे हैं।

हमारी तीसरी आंखे कहीं नहीं हैं वो तो हमारी अन्तरात्मा है हमारा मन है, दिल है ….यदि हम दोनों आंखो को बंद कर के मन की आंखो से देखें तो कोई भी चीज हमें गलतफहमी में नहीं डालती और ना ही सही, गलत का अंतर करने में कोई गलतियां होती है।

ये चीज आप सभी बहुत अच्छी तरह से जानते होंगे। सिर्फ एक हमारा अन्तर आत्मा ही है जो सच्चाई को देख सकता है जान सकता है परख सकता है …… आप सभी इस प्रक्रिया रोज करते होंगे थक कर हार कर बिस्तर पर लेट कर अपनी आंखे बंद कर के अपनी दिनचर्या को याद करते है आपकी आंखे बंद होने के बावजूद भी सारी चीजे नजरों के सामने आती होगी वो आपकी तीसरी आंखे सारी चीजो का मंथन करता है अन्तरात्मा आपको बताने की कोशिश करता है क्या सही था और क्या गलत उस समय तो आप फिर भी मान लेते है लेकिन आंखे खोलते ही आप अपनी आत्मा की आवाज को फिर से नजर अंदाज कर दिया करते है।

जीवन आशांत होने का सबसे बड़ा कारण है दिमाग का सुनने से आपके पास दौलत तो आ जाएगा पर शांति कोशो दुर रहेगी। अक्सर हम सभी अपने दिमाग का ज्यादा प्रयोग करते है और दूसरों की बातें हमारे दिमाग को ज्यादा प्रभावित करती है। बहुत सारी बाते हमारे बुजुर्गों ने कहा वो सारी चीजे सही भी साबित हुई है। जैसे कि कानों से सुनी बातें, आंखों से देखी चीजें ये जरूरी नहीं है कि वो सच हो।

मैं सही हूं, ये हमारा अभीमान है। सामने वाला गलत है ये हमारी सबसे बड़ी भूल है। हम सब जानते है हर एक इंसान में अच्छाई और बुराई दोनों की समावेश होती है पर अक्सर देखा गया है अधिकांशत लोगो में ये अहंकार के कारण खुद को सही और दूसरों को गलत साबित करने पर तुले हुए होते है। अर्थात हम उसी क्षण अपनी बुराई को दुर करने की कोशिश करे और दूसरों की अच्छाई को ढुंढ कर निकाले तो शायद हमारी बची हुई जिंदगी को खुशहाल और उल्लास से जी सकते है दूसरों की खामीयाँ आप जीतना देखेंगे आप खुद को उतना ही तनावपूर्ण स्थिति को पैदा करेंगे चुंकि जीवन बहुत कम है इसे शिकायत, घ्रीणा, और तनाव से क्यो जाया करे। रात जब होती है तो ये जरूरी नहीं हम सवेरा देखेंगे ऐसा भी हो सकता है हम उसी रात के अंधेरे में डुब जाए और हमारी आंखे ही न खुले सुबह का उजाला देखने की अवसर ही न मिले। यहा पर फॉलो से हमारी तीसरी आंखे खुल जाती है और वो आंखे सब कुछ देखता और वो पछतावा करता है बिल्कुल मौन हो के पर उसे दुनियां नहीं देख पाती। क्योंकि वह जब जीवित था तब भी अदृश्य था और मौत के बाद भी वो अदृश्य है। क्योंकि वो रूह है आत्मा है उसे महसूस किया जाता है दिखाई कभी भी नहीं देती। यदि यही सत्य है तो क्यों न हम अपनी अन्तर आत्मा की आवाज सुने सत्य को क्यो इनकार करे।

सिर्फ एक पल में खत्म हो जाती है जिंदगी और मौत के गहरी नींद में सो जाते है हमेंशा हमेंशा के लिए। हमारी सारी चीजे दुनियां में धरी की धरी रह जाती है। हमारा अभीमान, हमारी दौलत, शोहरत, और नफरत मौत के बाद ये सारी चीजे कीसी काम के नहीं है सिर्फ रह जाता है प्रेमभाव जिससे लोग याद करते है। इसलिए हमेंशा अपनी अन्तरात्मा की सुने और शांति संतुष्टी प्यार से बची हुई जीवन को खुशहाली के साथ जीने की कोशिश करे।

 

     ©तबस्सुम परवीन, अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़                                                                

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